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India News(इंडिया न्यूज),Krishna Janmashtami: आज तीन लोक से न्यारी ब्रज भूमि के ह्दयस्थल वृंदावन में यशोदा नंदन कृष्ण का जन्मोत्सव कहीं दिन के उजाले में हुआ तो कहीं मध्यरात्रि मनाया गया। बांकेबिहारी मंदिर में रात 12 बजते ही कान्हा के जन्म की बधाइयां गूंज उठी। सेवायतों ने ठाकुर जी का पंचामृत महाअभिषेक किया। इस दौरान अपने आराध्य को एक पल निहारने के लिए भक्तों में होड़ लगी रही।
मंदिर परिसर के अंदर ही नहीं बाहर तक हजारों लोग कतारबद्ध थे और दर्शन का यह सिलसिला रात भर चला। रात 1.55 बजे मंगला आरती के दर्शन के लिए 12 से ही श्रद्धाल अपने होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशालाएं छोड़कर मंदिर के बाहर जम गए। आलम यह था कि वर्ष में एक बार होने वाली इस आरती का दर्शन लाभ पाने से कोई वंचित नहीं रहना चाहता था। हालांकि प्रशासन ने आरती के दौरान सीमित संख्या में ही भक्तों को अंदर जाने दिया, लेकिन इसके बाद मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश अनवरत चलता रहा।
बांकेबिहारी मंदिर में मंगला आरती के बाद मंदिर के गोस्वामी समाज की महिलाएं और गोस्वामीजन घर पर बने मिगी पाग, धनिया की पंजीरी और मोहन भोग चांदी के थालों में सजाकर मंदिर लाए और कन्हैया का भोग लगाया। इस दौरान गोस्वामीजनों ने मदिरों में अपने लाड़ले ठाकुर के जन्म की खुशी में पदों का सस्वर गायन किया, जिसे सुन श्रद्धालु भक्ति रस में सराबोर हो गए।
बांकेबिहारी मंदिर के गर्भगृह में मध्य रात्रि 12 बजे सेवायत गोस्वामियों ने विधिविधान पूर्वक अपने आराध्य का बंद पटों के बीच महाभिषेक किया। इसके करीब डेढ घंटे बाद पट खोले गए। चांदी की पालकी में विराजमान ठाकुर बांकेबिहारी और उनके दोनों ओर चांदी जड़ित सुसज्जित गोपियोंं ने देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं को दर्शन दिए। रात 1.55 बजे मंगला आरती हुई। इस दौरान मंदिर परिसर सेवायत परिवार, उनके यजमान और श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया। करीब आठ मिनट की मंगला आरती के बाद बांकेबिहारी के लिए तैयार किया गया चरणामृत सेवायत गोस्वामी द्वारा भक्तों पर बरसाया गया। रात दो बजे से प्रात: साढे पांच बजे तक ठाकुरजी के जन्म के दर्शन के लिए पट खुले रहे।
मंदिर के सेवायत आनंद गोस्वामी ने बताया कि परंपरा के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर समय-समय पर बाल भोग, शृंगारभोग, राजभोग, उत्थान भोग, शयन लगाए गए। इसके बाद प्रभु के जन्मोत्सव में शामिल होने वाले भक्तोें को मोहन भोग का वितरण किया गया। जगह-जगह नंद के आनन्द भयो जय कन्हैया लाल की बोल मुखर हो गए। वहीं प्राचीन सप्त देवालयों में बृहस्पतिवार सुबह से ही कान्हा के जन्मोत्सव की धूम मची रही। सुबह दस बजे सेवायत गोस्वामियों ने ठाकुरजी के महाभिषेक की शुरुआत की। इस दौरान भक्तों में ठाकुरजी के जन्माभिषेक की एक झलक पाने की होड़ मची रही। मंदिर के द्वारों पर कान्हा के जन्म की खुशी में नौहबत बजती रही। शहनाई, ढोल व नगाड़ों के बीच कान्हा के जन्म पर बधाई गायन किया गया।
इस्कॉन मंदिर में सुबह से ही देशी-विदेशी भक्तों का तांता लगा रहा। श्रीराधे की धुन पर नाचते-गाते भक्त आराध्य के जन्म का इंतजार करते रहे। इससे पहले भक्तों ने मंदिर को देशी-विदेशी पुष्पों से सजाया। भव्य पुष्प बंगला में प्रभु राधाकृष्ण, कृष्ण बलराम एवं निताईगौर को विराजमान किया और शृंगार आरती की गई। इसके दर्शन के लिए भक्तजनों में होड़ मच गई। हर कोई प्रभु की एक झलक पाने को आतुर दिखा। रात 10 बजे से वैदिक पद्धति के अनुसार इस्कॉन के आजीवन सदस्यों ने महाभिषेक एवं महाआरती की। यह दौर रात्रि 12 बजे तक चला। इसके बाद भव्य शृंगार दर्शन हुए और कान्हा के जन्म लेते ही सौ किलो का केक काटकर प्रसाद रूप में वितरित किया गया।
भगवान कृष्ण को 56 प्रकार के व्यंजनों के भोग लगाया गया। इस्कॉन मंदिर के अध्यक्ष पंचगौड़ा दास महाराज ने भक्तों को हरिनाम संकीर्तन व कृष्ण जन्माष्टमी के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि भगवान कृष्ण ने जन्म लीला से लेकर महाभारत तक जगत को सीख दी है। कदम-कदम पर भक्तों को अनुशासन, दृढ़ता और ईमानदारी से आगे बढ़ते रहने के साथ ही सभी को प्रेम करने का भी संदेश दिया है। ऐसे कान्हा का इस्कॉन मंदिर में जन्मोत्सव मनाया गया।
भगवान कृष्ण और राधारानी के आध्यात्म प्रेम को दर्शाने वाले और भव्यता के प्रतीक प्रेम मंदिर में जन्माष्टमी पर्व धूमधाम से मनाया गया। सुबह से शाम तक हजारों भक्त राधे-राधे और श्यामा श्याम के जयकारों के बीच भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव के साक्षी बनने पहुंचे। भोर होने के साथ ही हजारों भक्त अपने आराध्य राधाकृष्ण के दर्शन के लिए मंदिर के आसपास जुटने लगे थे। पूरा मंदिर परिसर संकीर्तन की धुन से गुंजायमान हो उठा।
सुगंधित एवं आकर्षक पुष्पों और लतापताओं से सुसज्जित मंदिर में जगह-जगह बाल गोपाल की झांकियां शोभायमान की ग थी। शाम साढे़े चार बजे प्रभु राधाकृष्ण की आरती दर्शन के बाद मध्य रात्रि 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म हुआ। इस दौरन मंदिर के चारों ओर ढोल-नगाड़े, शंखनाद की ध्वनि गूंजने लगी। बाल गोपाल का दूध, दही, घी, शहद और यमुना जल से महाभिषेक किया गया। अभिषेक के बाद प्रभु कृष्ण के पट बंद हुए। पौने एक बजे वेद मंत्रोच्चार और स्तुति गान के बीच पट खुले। इसके साथ ही एक बार फिर नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की के बोल से मंदिर गुंजायमान हो गया। कन्हैया को माखन मिश्री का भोग लगाया गया।
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