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इंडिया न्यूज (Lal Mahavar is part of Solah Shringar)
महावर यानी आलता को सोलह श्रृंगार में से एक कहा गया है। कई जगहों पर दुल्हन जब पहली बार ससुराल आती है तो गृह प्रवेश की रस्म के अनुसार वो लाल महावर से घर के अंदर बढ़ते कदमों की छाप छोड़ती है। कई राज्यों में महिलाएं इसे तीज-त्योहारों में जरूर लगाती हैं साथ ही पूजा या शुभ कार्य में भी इस लगाने का प्रचलन है। वहीं नेचुरोपैथ अनुसार इसे नेचुरल तरीके से तैयार कर के लगाया जाए तो एड़ियों को ठंडक मिलती है, जिससे तनाव दूर होता है।
महावर को लेकर एक कहावत प्रसिद्ध है, जिसमें कहा जाता है कि पुराने समय में जब महावर लगे पैर से सुंदर महिलाएं अशोक वृक्ष के चारों तरफ घूमती थी तो उस पर कलियां खिल जाती थीं, जिसे वसंत आने का संकेत माना जाता था। सावन और तीज की पूजा में सुहागन महिलाएं इसे जरूर लगाती हैं। आज भी कई राज्यों में खास करके बिहार बंगाल और ओडिशा में महावर के बिना दुल्हन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। बंगाल और ओडिशा में तो दुल्हन के हाथों में महावर लगाया जाता है।
देवी के लिए गाए गए कई भक्ति गीतों में भी लाल महावर का जिक्र है। देवी के शृंगार पूजा में भी इसे जरूर रखा जाता है। इसके बिना देवी की मूर्ति भी अधूरी है। लड़कियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। इसलिए कई लोग बेटी के पैदा होने पर उसके नन्हें पैरों को महावर में डूबो कर उसके छापे लेते हैं और उसे संभाल कर रखते हैं।
आलता मूल रूप से एक बंगाली शब्द है। हिन्दी में इसे महावर कहते हैं। पुराने समय मे आलता कच्ची लाख और पान को पीस कर उसे पानी में पका कर तैयार किया जाता था। जिसे लगाने से एड़ियों को ठंडक मिलती है और ये तनाव को दूर करता था।
बारिश में ग्रामीण क्षेत्रों में किसानी करने वाली महिलाएं खेत में जाने से पहले महावर लगाती हैं। पूर्वांचल और यूपी के कुछ ग्रामीण इलाकों में माना जाता है कि खरीफ सीजन में धान की निदाई, गोड़ाई और रोपाई के दौरान महिलाएं घंटों खेतों में काम करती हैं, जिससे उनकी एड़ियां और तलवे फट जाते हैं। इसलिए महिलाएं महावर लगाती हैं ताकि वो पैरों को खराब होने से बचा सकें।
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