होम / भूतों के लिए श्मशान घाट भेजा जाता है इस चमत्कारी मंदिर का प्रसाद, भोग का तरीका भी है अनोखा!

भूतों के लिए श्मशान घाट भेजा जाता है इस चमत्कारी मंदिर का प्रसाद, भोग का तरीका भी है अनोखा!

Prachi Jain • LAST UPDATED : July 18, 2024, 4:30 pm IST

India News(इंडिया न्यूज), Lord Jagannath: देवशयनी एकादशी पर श्री जगन्नाथ भगवान ने चंदुआ (मुकुट) धारण किया और स्वर्ण भेष में बहन सुभद्रा व भाई बलराम के साथ भक्तों को दर्शन दिए। कमला नगर स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर में इस विशेष अवसर पर भगवान के चरण और हाथों के दर्शन से भक्तों का मन भक्तिभाव से भर गया। संध्या आरती से पूर्व हरे राम हरे कृष्णा का कीर्तन हुआ, जो भक्तों को आध्यात्मिक आनंद में डूबा गया। इस दिन मंदिर में एक अद्भुत और दिव्य माहौल रहा, जहां हर भक्त ने अपनी श्रद्धा व्यक्त की।

मौसी के घर से उपहार लेकर लौटते हैं प्रभु

सामान्य तौर पर सिर पर पगड़ी धारण करने वाले श्री जगन्नाथ भगवान ने इस बार चंदुआ (मुकुट) धारण किया। श्री जगन्नाथ मंदिर, कमला नगर के अध्यक्ष अरविन्द स्वरूप ने बताया कि मान्यता के अनुसार, रथयात्रा के बाद अपने मौसी के घर से लौटे भगवान ने देवशयनी एकादशी के दिन उन सभी उपहारों को धारण किया, जो उन्हें मौसी के घर से मिले थे। इसी परंपरा के तहत भगवान का स्वर्ण भेष में श्रंगार किया जाता है।

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इस वर्ष, भगवान को गोल्ड प्लेटेड चांदी के आभूषण और स्वर्ण रंग की पोशाक से श्रंगारित किया गया। वर्ष में केवल एक बार, देवशयनी एकादशी के दिन, भगवान के चरण और हाथों के दर्शन होते हैं, जो भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और विशेष अवसर होता है।

भूत प्रेतों के लिए भिजवाया जाता हैं प्रसाद

गुरुवार को अधार्पण होगा, जिसके बाद भगवान का प्रसाद श्मशान घाट में भूत-प्रेतों के लिए भेजा जाता है। श्री जगन्नाथ मंदिर, कमला नगर के अध्यक्ष अरविन्द स्वरूप ने बताया कि भगवान सभी का ध्यान रखते हैं, इसलिए कल का भोग हड़िया में लगाया जाएगा और इसे भूत-प्रेतों के लिए श्मशान भेजा जाएगा। आज के दिन भगवान द्वारा धारण की गई पोशाक को वे दोबारा नहीं धारण करते। यह विशेष परंपरा इस मान्यता को दर्शाती है कि भगवान सभी जीवों का ध्यान रखते हैं और हर किसी के प्रति अपनी करुणा प्रकट करते हैं।

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बैंगन के व्यंजनों का चढ़ता हैं भोग

श्री जगन्नाथ मंदिर (इस्कॉन) कमला नगर के अध्यक्ष अरविन्द प्रभु ने बताया कि दशमी के दिन बैंगन के विभिन्न व्यंजनों का प्रसाद लगाया गया। इनमें बैंगन की पूड़ी, बैंगन की रोटी, बैंगन की कचौड़ी, बैंगन का मीठा और नमकीन रायता, बैंगन का भाजा, बैंगन की रस वाली सब्जी, और दूध के साथ बनी बैंगन की मिठाई शामिल थीं। दशमी के बाद चार महीने (सावन, भादों, अश्विन, कार्तिक) तक पत्तेदार सब्जियाँ और बैंगन नहीं खाए जाते हैं। इसका वैज्ञानिक कारण यह है कि बरसात के मौसम में इनमें कीड़े होने से पाचन में दिक्कत होती है, इसलिए इन्हें चार माह के लिए त्यागा जाता है।

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