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Maa Skandmata Vrat Katha in Hindi

Sunita • LAST UPDATED : March 29, 2022, 3:15 pm IST
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Maa Skandmata Vrat Katha in Hindi

Maa Skandmata Vrat Katha

Maa Skandmata Vrat Katha in Hindi: चैत्र नवरात्रि (Navratri 2022) के पांचवे दिन पर मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता की पूजा होती है। पुराणों के अनुसार मां स्कंदमाता कमल पर विराजमान रहती हैं इसलिए उन्हें पद्मासना देवी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि मां स्कंदमाता मातृत्व को परिभाषित करती हैं।

मां स्कंदमाता के गोद में छह मुख वाले स्कंद कुमार विराजित रहते हैं। मां स्कंदमाता की पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है तथा शत्रुओं का विनाश होता है। इतना ही नहीं मां स्कंदमाता की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Maa Skandmata Vrat Katha in Hindi

Maa Skandmata Vrat Katha

सती द्वारा स्वयं को यज्ञ में भस्म कर देने के बाद शंकर भगवान सांसारिक मामलों से अलग हो गए, और कठिन तपस्या में लीन हो गए थे। उसी समय देवता तारकासुर के अत्याचारों से कष्ट भोग रहे थे। तारकासुर को वरदान था कि केवल भगवान शिव की संतान ही उनका वध कर सकती है। बिना सती के शिव की संतान नहीं हो सकती, यह सोचकर देवता भगवान विष्णु के पास मदद मांगने के लिए गए।
लेकिन भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि यह स्थिति के लिए आप स्वयं ही जिम्मेदार हैं। अगर आप सब दक्ष प्रजापति के यज्ञ में भगवान शिव के बिना उपस्थित नहीं होते तो सती को अपना शरीर नहीं छोड़ना पड़ता। उसके बाद विष्णु भगवान उन्हें पार्वती माता के बारे में बताते हैं, जो आदि शक्ति माता सती की अवतार हैं। उसके बाद देवताओं की ओर से महर्षि नारद, पार्वती के पास जाते हैं और उनसे तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कहते हैं जो पिछले जन्म में भी उनके पति थे।
हज़ारों वर्ष की तपस्या के बाद शिव भगवान पार्वती माता से विवाह करते हैं। भगवान शिव और माँ पार्वती की ऊर्जा मिलकर एक ज्वलंत बीज को पैदा करती है। जब तक वह बीज शिव भगवान की संतान नहीं बन जाता, तब तक अग्नि को सर्वाना झील में सुरक्षित रूप से ले जाने का काम सौंपा जाता है। बीज से निकलने वाली गर्मी अग्नि के लिए असहनीय हो जाती है और वह बीज को गंगा माँ को सौंप देती है, जो उसे सुरक्षित सर्वाना झील में ले जाती है।
देवी पार्वती ने तब जल श्रोत का रूप धारण कर लिया ताकि वह बीज की सुरक्षा कर सके। इस प्रकार छह माता द्वारा देखभाल किये जाने के कारण छह मुखी कार्तिकेय जन्म लेते हैं। वह बड़े होकर सुन्दर, बुद्धिमान और शक्तिशाली कुमार बने। कार्तिकेय जी को ब्रह्मा जी के पास शिक्षा के लिए भेजा गया, लेकिन पहले ही दिन उन्होंने ब्रह्मा जी से ॐ का अर्थ पूछा। ब्रह्मा जी ने उन्हें बारह हज़ार श्लोकों में अर्थ समझाया। लेकिन कार्तिकेय को संतुष्टि नहीं मिली। उन्होंने शिव भगवान से वही प्रश्न पूछा, फिर शिव भगवान ने बारह लाख श्लोकों में ॐ का अर्थ समझाया।
वहां से भी असंतुष्ट होकर उन्होंने स्वयं को बारह करोड़ श्लोकों में ॐ का अर्थ समझाकर संतुष्टि प्राप्त की। शिक्षा प्राप्त करने के बाद देवताओं के सेनापति के रूप में उन्हें सभी देवताओं ने आशीर्वाद दिया और तारकासुर के खिलाफ युद्ध के लिए विशेष हथियार प्रदान किए। कार्तिकेय भगवान ने एक भयंकर युद्ध में तारकासुर को मार डाला। इस प्रकार माँ स्कंदमाता को एक सर्वश्रेष्ठ बच्चे की माँ के रूप में पूजा जाता है। स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वचालित हो जाती है, क्यूंकि वह अपनी माँ की गोद में विराजे हुए हैं। उनकी पूजा से सुख, शांति, समृद्धि और मोक्ष प्राप्त होता है।
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Maa Skandmata Ki Aarti

Maa Skandmata Vrat Katha

जय तेरी हो स्कंद माता। पांचवा नाम तुम्हारा आता।।

सब के मन की जानन हारी। जग जननी सब की महतारी।।

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं। हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं।।

कई नामों से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।।

कही पहाड़ो पर हैं डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा।।

हर मंदिर में तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे।।

भगति अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो।।

इंद्र आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे।।

दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आएं। तुम ही खंडा हाथ उठाएं।।

दासो को सदा बचाने आई। चमन की आस पुजाने आई।।

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