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India News(इंडिया न्यूज), Mahakumbh 2025: प्रयागराज में भव्य महाकुंभ मेला चल रहा है। मकर संक्रांति पर महाकुंभ का पहला अमृत स्नान हो चुका है। महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए अघोरी और नागा साधु आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन दोनों साधुओं की दुनिया बेहद रहस्यमयी है। दोनों साधुओं की जीवनशैली और पूजा पद्धति अलग-अलग है। ऐसे में आइए जानते हैं कि दोनों की पूजा पद्धति कितनी अलग है।
हिंदू मान्यताओं के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना के दौरान धर्म की रक्षा के लिए जो समूह बनाया था, उसे नागा साधुओं के नाम से जाना जाता है। नागा साधु जीवन भर तपस्या करते हैं। नागा साधु हमेशा भक्ति में लीन रहते हैं। नागा साधु भगवान शिव की पूजा करते हैं. वहीं अघोरी साधुओं की उत्पत्ति भगवान दत्तात्रेय से मानी जाती है. अघोरी भी नागा साधुओं की तरह शिव की भक्ति में लीन रहते हैं. अघोरी साधु भगवान शिव के साथ मां काली की भी पूजा करते हैं. अघोरी कपिला परंपरा का पालन करते हैं। अघोरी साधु अपने जीवन में कठोर साधना और तंत्र-मंत्र करते हैं।
नागा साधु शिवलिंग पर जल, राख और बेलपत्र चढ़ाते हैं। नागा साधु अग्नि और राख से भी भगवान शिव की पूजा करते हैं। महाकुंभ या कुंभ जैसे आयोजनों के बाद नागा साधु हिमालय में ध्यान और योग के जरिए भगवान शिव में विलीन हो जाते हैं। वहीं अगर अघोरी साधुओं की बात करें तो अघोरी साधु भी भगवान शिव के उपासक होते हैं, लेकिन अघोरियों की पूजा पद्धति नागा साधुओं से अलग होती है। अघोरी साधु तीन तरह से पूजा या कहें साधना करते हैं। इसमें शव साधना, शिव साधना और श्मशान साधना शामिल है।
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शव साधना में अघोरी साधु मांस और मदिरा चढ़ाते हैं। शिव साधना में अघोरी साधु एक पैर पर शव पर खड़े होते हैं। अघोरी साधु शव पर एक पैर पर खड़े होकर तपस्या करते हैं। शमशान साधना में अघोरी श्मशान में हवन करते हैं। इस दौरान अघोरी साधु श्मशान में तंत्र मंत्र भी करते हैं।
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