संबंधित खबरें
धर्म के रक्षक नागा साधुओं को आखिर क्यों बनाने पड़ते है एक शव के साथ संबंध? कारण जान नहीं होगा कानों पर यकीन!
ये भगवान सिर से पैर तक डूबे हैं कर्ज में, अब भक्त कर रहे हैं अपने आराध्य देव को कर्जमुक्त
इन 5 जातकों के लिए धरती पर ही बना होता है स्वर्ग, इस गहरे राज को पहचान पाना क्यों होता है उनके लिए इतना मुश्किल?
जिंदगी से मौत तक हिंदुओं को निभाने होते हैं ये 16 संस्कार, जानें हर एक पीछे गहरा रहस्य
सपने में भगवान को सुनाया है दुख-दर्द? जानें रियल लाइफ में इसा क्या है मतलब…आपको उठकर करना चाहिए ये काम
पांडवों द्वारा द्रौपदी को दिए हर एक जेवर में कैसे छिपी थी एक गहरी शक्ति? प्रत्येक आभूषण का था एक रहस्यमयी नाम!
India News (इंडिया न्यूज), Story of Khooni Naga Sadhu: सनातन धर्म में साधुओं की अनेक परंपराएं हैं, जिनमें नागा साधुओं की परंपरा सबसे अधिक रहस्यमयी मानी जाती है। नागा साधु साधारणतः आम जीवन में जल्दी दिखाई नहीं देते और उनकी जीवन शैली कठोर अनुशासन और गहन तपस्या से भरी होती है। नागा साधु बनने के लिए साधक को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसमें वर्षों का तप और स्वयं का श्राद्ध करना शामिल है। नागा साधु बनने के बाद उन्हें एक विशेष श्रेणी में रखा जाता है। इन्हीं में से एक श्रेणी है खूनी नागा साधुओं की, जो धर्म रक्षा के संकल्प के लिए प्रसिद्ध हैं। ये साधु अपने उग्र स्वभाव और योद्धा जैसी मानसिकता के लिए जाने जाते हैं। आइए जानते हैं नागा साधुओं और खूनी नागा साधुओं के बारे में विस्तार से।
नागा साधु बनने के लिए भोग-विलास और सांसारिक वासनाओं का पूर्णतः त्याग करना पड़ता है। साधक को इस प्रक्रिया में अनेक कठिन परीक्षाओं से गुजरना होता है। इन परीक्षाओं का आयोजन महंतों द्वारा किया जाता है। नागा साधुओं को हरिद्वार, उज्जैन और अन्य धार्मिक स्थलों पर दीक्षा दी जाती है। दीक्षा स्थल और समय का निर्णय महंतों के द्वारा किया जाता है।
नागा साधु बनने से पूर्व साधक को तीन वर्षों तक महंतों की सेवा करनी होती है। इस अवधि में साधक का ब्रह्मचर्य की परीक्षा होती है। इन परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पार करने के बाद महंत साधक को दीक्षा देते हैं। उज्जैन में दीक्षा प्राप्त करने वाले नागा साधुओं को ‘खूनी नागा साधु’ कहा जाता है। खूनी नागा साधु बनने के लिए साधक को कई रातों तक भगवान शिव के मंत्रों का जाप करना पड़ता है। इसके बाद अखाड़े के प्रमुख महामंडलेश्वर द्वारा विजया हवन करवाया जाता है, जो दीक्षा प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
उज्जैन में दीक्षा प्राप्त करने वाले खूनी नागा साधु अपने उग्र स्वभाव के लिए प्रसिद्ध होते हैं। हालांकि, इनके स्वभाव में छल-कपट या बैर नहीं होता। ये साधु धर्म की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। चाहे अपनी बलि देनी हो या किसी अन्य का खून बहाना हो, ये कभी पीछे नहीं हटते। इनकी तुलना योद्धाओं से की जा सकती है, जो धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।
महाकुंभ में नागा साधुओं को विशेष स्थान प्राप्त होता है। कुंभ मेले में शाही स्नान की परंपरा नागा साधुओं के नेतृत्व में शुरू होती है। इनके स्नान के बाद ही अन्य साधु और आम लोगों को स्नान करने की अनुमति दी जाती है।
आगामी महाकुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से आरंभ होगा और 26 फरवरी 2025 तक चलेगा। इस दौरान लाखों श्रद्धालु नागा साधुओं और उनकी परंपराओं का साक्षात्कार करेंगे।
नागा साधुओं की परंपराएं सनातन धर्म की महान विरासत का अभिन्न हिस्सा हैं। उनकी कठोर तपस्या, धर्म रक्षा का संकल्प और जीवन शैली अद्वितीय है। विशेष रूप से खूनी नागा साधु धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित योद्धाओं के समान हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों में उनकी भूमिका धार्मिक श्रद्धा और संस्कृति के प्रति गहरी आस्था का प्रतीक है। यह परंपरा न केवल धर्म की रक्षा करती है, बल्कि सनातन धर्म की गहनता और विविधता को भी उजागर करती है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.