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India News(इंडिया न्यूज), Shri Krishna War With Arjuna: महाभारत काल की एक प्राचीन कथा है, जिसमें महर्षि गालव और चित्रसेन की कहानी को विस्तार से बताया गया है। एक दिन महर्षि गालव यज्ञ संपन्न कर सूर्य को जल अर्पण कर रहे थे। इसी समय, गंधर्वराज चित्रसेन आकाश मार्ग से गुजरते हुए नीचे की ओर थूक दिया। दुर्भाग्यवश, चित्रसेन का थूक सीधे महर्षि गालव के हाथों में आ गिरा। इस घटना से महर्षि गालव अत्यंत क्रोधित हो गए और इसे अपने सम्मान का घोर अपमान समझा।
अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए महर्षि गालव ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली। भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का सम्मान बनाए रखने के लिए चित्रसेन का वध करने का वचन दिया। जब नारद मुनि को इस बात की जानकारी हुई, तो उन्होंने चित्रसेन को इसके बारे में बताया। चिंतित चित्रसेन ने नारद मुनि से प्राण रक्षा का उपाय पूछा। नारद मुनि ने उन्हें अर्जुन की शरण में जाने का सुझाव दिया, क्योंकि अज्ञातवास के दौरान चित्रसेन ने अर्जुन को नृत्य और संगीत की शिक्षा दी थी, जिससे अर्जुन और चित्रसेन का एक गुरु-शिष्य संबंध बन गया था।
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नारद मुनि के परामर्श पर चित्रसेन अर्जुन की पत्नी सुभद्रा के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। चित्रसेन ने सुभद्रा को बताया कि वह अर्जुन के गुरु हैं, और अर्जुन के अलावा कोई और उनकी रक्षा नहीं कर सकता। सुभद्रा ने अर्जुन से वचन लिया कि वह चित्रसेन की रक्षा करेंगे। लेकिन सुभद्रा इस बात से अनजान थीं कि चित्रसेन का वध करने का संकल्प स्वयं श्रीकृष्ण ने लिया था।
अर्जुन के वचनबद्ध होने के बाद, एक ओर भगवान श्रीकृष्ण और दूसरी ओर अर्जुन के बीच भयानक युद्ध छिड़ गया। दोनों पराक्रमी योद्धाओं में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था। युद्ध के चरम पर, जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र का संधान किया, तो अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र का आह्वान कर दिया।
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इस युद्ध की भीषणता को देखते हुए स्वयं ब्रह्मदेव युद्ध स्थल पर उपस्थित हुए और श्रीकृष्ण और अर्जुन को समझाया। ब्रह्मदेव ने अर्जुन को ब्रह्मास्त्र वापस लेने का आदेश दिया और भगवान श्रीकृष्ण से उनकी प्रतिज्ञा वापस लेने का आग्रह किया। ब्रह्मदेव के समझाने पर अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र को वापस लिया, और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ते हुए अर्जुन को गले से लगा लिया।
इस प्रकार, यह घटना भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच की अपार मित्रता और प्रेम का प्रतीक बन गई। चित्रसेन के प्राण बच गए और महर्षि गालव का अपमान भी शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त हुआ। यह कथा इस बात को भी दर्शाती है कि धैर्य, प्रेम और मित्रता की शक्ति युद्ध और प्रतिशोध से कहीं अधिक प्रभावी होती है।
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