(दिल्ली) : रामचरित मानस का नाम सुनते ही आपके जहन में क्या आता होगा ? यही ना मन में भगवान राम का भाव।भगवान राम के दिए संदेश का भाव। राम राज्य का भाव। समानता और अवसर का भाव। लेकिन देश में पिछले 24 घंटों से रामचरित मानस पर जबरदस्त राजनीति हो रही है। पवित्र गंथ्र रामचरितमानस की चौपाइयां तक जला दी गयी है। बता दें, आज 30 जनवरी है यानि वो तारीख जब साल 1948 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या की गई थी। वो तारीख जब सीने पर गोलियां लगने के बाद बापू के मुंह से एक ही शब्द निकला था वो था हे राम। कल्पना कीजिए अगर आज बापू जिंदा होते तो रामचरित मानस के अपमान पर भी शायद उनके मुंह से क्या शब्द निकलते। बेशक !हे राम। लेकिन देश में राम के नाम से जुड़ा कुछ भी हो संग्राम छिड़ ही जाता है।
बिहार के शिक्षा मंत्री द्वारा शुरू किया गया विवाद आज देश के कोने -कोने तक पहुंच गया है। मानस पर मचे महाभारत पर राजनीति का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। बता दें, रविवार को लखनऊ में पीजीआई के वृंदावन कालोनी में रामचरित मानस की प्रतियां फाड़ने के बाद जला दी गईं। प्रतियां जलाने वाले ओबीसी महासभा के पदाधिकारी थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में नारेबाजी की और प्रतियां जलाई थी।
वहीं, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस एक्शन लेते हुए धार्मिक भावनाएं भड़काने के आरोप में लखनऊ में 10 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है। पुलिस ने मानस की प्रतियां फाड़ने के आरोप में महेंद्र यादव, देवेंद्र यादव,यशपाल लोधी, एसएस यादव,सुजीत, नरेश सिंह सलीम और संतोष वर्मा के खिलाफ FIR दर्ज की है। मामले में स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ भी केस दर्ज हो चुका है।
अब सवाल यही है कि अचानक सदियों पुराने रामचरितमानस पर इतनी घटिया राजनीति क्यों? वैसे देखा जाए तो सियासत में कुछ भी अचानक या अपने आप नहीं होता है। बस खास टाइमिंग,खास मौका और खास माहौल का इंतजार होता है। तो क्या राजनीति के लिए रामचरित मानस का इस्तेमाल हो रहा है ? रामचरित मानस की प्रतियों को जलाना करोड़ों लोगों की आस्था से खिलवाड़ नहीं है? रामचरित मानस के नाम पर समाज को बांटने की कोशिश हो रही है ? रामचरितमानस के नाम पर राजनीतिक प्रयोग कितना सही है?
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