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India News(इंडिया न्यूज), Mahabharat ShriKrishna: महाभारत काल की कितनी कहानियां हम सुनते हुए आ रहे हैं। पांडवो और कौरवो के बीच में छिड़े इस युद्ध ने एक अलग ही छाप छोड़ी थी जिसके किस्से-कहानिया हम आजतक सुनते आ रहे हैं महाभारत काल में श्री कृष्ण ने कई महत्वपूर्ण घटनाओं में भाग लिया और अपनी दिव्य शक्तियों का प्रदर्शन किया। उनमें से एक प्रमुख घटना है महाभारत युद्ध के बाद अश्वत्थामा द्वारा उत्तरा के गर्भ में ब्रह्मास्त्र छोड़ना। इस घटना में श्री कृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में स्थित अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को जीवनदान दिया था।
आज हम आपको बताएंगे भगवान के उन चमत्कारों के बारे में बताने जा रहे हैं जो भगवान श्री कृष्ण ने अपने जन्म से लेकर महाभारत काल तक किये …..
शायद ही आप लोग में से बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि श्री कृष्ण ने अपनी शिक्षा उज्जैन के सांदीपति से प्राप्त की जिस दौरान गुरु दक्षिणा में उनके गुरु ने उनसे कहा कि मेरे पुत्र को एक असुर उठा ले गया हैं क्या तुम उसे वापिस ला सकते हो? हालाँकि कृष्ण को पता चल चूका था कि उनके गुरु का पुत्र यमलोक सिद्धार चूका हैं लेकिन क्योकि ये उनकी मांग थी इसलिए श्री कृष्ण ने उनके पुत्र को यमलोक से भी वापिस ला दिया।
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सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि श्री कृष्ण ने अपनी माता देवकी के भी उन 6 पुत्रों को जीवित कर दिया था जिनकी हत्या उन्ही के मामा कंस द्वारा की गई थी। तो वही युधिष्ठर ने यज्ञ किया। उसी यज्ञ का घोडा लेकर महाबली अर्जुन पूर्वी भारत में मणिपुर पहुंचा। तो वही अर्जुन का सामना मणिपुर नरेश वभ्रुवाहन से हुआ, जिसने उस घोड़े तक को रोक दिया था।
जिस दौरान वहां उन दोनों का घनघोर युद्ध हुआ जिसमे स्वयं युद्ध में पराजित हो अर्जुन मृत्यु को प्राप्त हुआ था और तब श्री कृष्ण ने अर्जुन की पत्नी उलूपी की नागमणि से उसे फिर एक बार जीवित कर दिया था।
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इसके पीछे एक और भी बड़ी वजह थी जिसके आगे भगवान भी विवश हो बैठे थे और वो थी कि उस दौरान उत्तरा गर्भवती थी और उसके पेट में अभिमन्यु का पुत्र पल रहा था। युद्ध के दौरान अश्वथामा ने यह संकल्प लेकर ब्रह्मास्त्र छोड़ा भी था की पांडवो का वंश बस किसी तरह नष्ट हो जाये। लेकिन इतने कड़े प्रहार के बाद भी श्री कृष्ण ने अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र को ब्रह्मास्त्र के प्रयोग के बाद भी जीवित कर दिया था और यही राजा परीक्षित नाम से प्रसिद्ध हुआ।
इस प्रकार, श्री कृष्ण ने परीक्षित को जीवनदान देकर भविष्य में धर्म की पुनः स्थापना के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
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