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India News (इंडिया न्यूज), Mahabharata Yuyutsu: महाभारत (Mahabharata) की इतनी कहानियां हम आजतक सुनते हुए आ रहे हैं इसके अनुसार, जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ तो निश्चित तय हो गया के दोनों ही पक्ष अपने-अपने मित्रों को सहायता के लिए बुलाएँगे अब ये तो लाज़मी भी हैं हर व्यक्ति अपने दुःख और सुख दोनों में ही अपने मित्र को सबसे पहले याद करता हैं। महाभारत के युद्ध में सभी कौरवों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक कौरव जीवित बचा था जिसके बारे में शायद ही अपने आज से पहले कभी सुना हो। जी हाँ! उसका नाम था युयुत्सु।
युयुत्सु धृतराष्ट्र का पुत्र था, लेकिन वह गांधारी के गर्भ से नहीं, बल्कि एक वैश्य महिला सुघदा के गर्भ से जन्मा था। युयुत्सु का जन्म गांधारी के सौ पुत्रों से पहले हुआ था। इसलिए, वह कौरवों का ही भाई था, लेकिन उसे सौ कौरवों की तरह गांधारी का पुत्र नहीं माना जाता था।
धर्म और सत्य के प्रति निष्ठा: युयुत्सु ने अपने सौतेले भाइयों के विपरीत, धर्म और सत्य के मार्ग का पालन किया। महाभारत युद्ध के समय, जब उसने देखा कि दुर्योधन और उसके भाई अधर्म के रास्ते पर चल रहे हैं, तो उसने पांडवों का पक्ष लिया।
युद्ध से पहले परिवर्तन: महाभारत युद्ध की शुरुआत से पहले ही युयुत्सु ने कौरवों का साथ छोड़ दिया और पांडवों के पक्ष में शामिल हो गया। यह उसके धर्म और न्याय के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।
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युद्ध के बाद का जीवन: महाभारत युद्ध में जीवित बचे युयुत्सु ने पांडवों के राज्याभिषेक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। युद्ध के बाद, युधिष्ठिर ने उसे अपने साथ रखा और हस्तिनापुर का एक महत्वपूर्ण पद दिया।
युयुत्सु का यह निर्णय कि वह पांडवों के पक्ष में लड़ेगा और धर्म का पालन करेगा, उसे महाभारत के अन्य कौरवों से अलग और विशिष्ट बनाता है। उसकी यह विशेषता उसे महाभारत की कथा में एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक पात्र बनाती है।
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