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Maharaja Agrasen Jayanti 2021 : Know The Importance Of Maharaj Agrasen Jayanti
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
Maharaja Agrasen Jayanti 2021 : महाराजा अग्रसेन व्यापारियों के शहर अगरोहा के एक महान राजा थे, महाराजा अग्रसेन जी का जन्म भगवान राम के चौतीसवीं पीढ़ी में द्वापर के अंतिम यानि कलयुग के प्रारंभ में आश्विन शुक्ल में हुआ था। वह प्रताप नगर के राजा वल्लभसेन व माता भगवती देवी के सबसे बड़े पुत्र थे। आपको बता दें प्रताप नगर वर्तमान में राजस्थान एवं हरियाणा राज्य के बीच सरस्वती नदी के किनारे है। जब अग्रसेन जी केवल 15 वर्ष के थे तो उन्होने पांडवों की तरफ से महाभारत के युद्ध में भाग लिया था। परम प्रतापी और तेजस्वी राजा अग्रसेन की जयंती कब है ।
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इस बार महाराजा अग्रसेन की जयंती नवरात्रि के पहले दिन यानि 7 अक्टूबर 2021 को है, । यह पर्व उत्तर प्रदेश व राजस्थान में व्यापारी और अग्रहरी समुदाय द्वारा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
Navratri 2021 Day 1 Maa Shailputri Puja Vidhi, Timings, Mantra, Muhurat, Aarti
ऐसा कहा जाता है की महाराज अग्रसेन, रानी माधवी के साथ अपने नए राज्य की तलाश में पूरे भारत भ्रमण पर निकले। किन्तु जब वे भ्रमण पर थे तो उन्हे देखा की एक जगह पर एक शेरनी अपने बचे को जन्म दे रही थी । किन्तु बच्चे ने जन्म के तुरंत बाद अपनी माता पर संकट समझ कर महाराज अग्रसेन के हाथी पर छलांग लगा दी । महाराज अग्रसेन ने इसे देवयोग समझा और ऋषि –मुनियों की सलाह से इस स्थान पर अपने राज्य की स्थापना कर दी । और उस स्थान को अग्रेयगण नाम दिया गया फिर बाद में बदल कर अग्रोहा कर दिया गया। अग्रोहा वर्तमान समय में हरियाणा राज्य के हिसार में पड़ता है। अग्रवाल समाज के लिये अग्रोहा के प्रति विशेष मान्यता है और अग्रवाल समाज इसे अपने समाज के पांचवें धाम के रूप में पुजाता है। प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार अग्रोहा को ही अग्रवालों का उद्गम स्थल माना गया है ओर माता लक्ष्मी महाराज अग्रसेन की कुल देवी थी इसी लिए माता लक्ष्मी अग्रवाल समाज की भी कुल देवी हुई । अग्रोहा धाम में माता लक्ष्मी का एक विशाल बड़ा मंदिर भी बनाया गया है ।
मयानुसार युवावस्था में उन्हें राजा नागराज की कन्या राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में शामिल होने का न्योता मिला। उस स्वयंवर में दूर-दूर से अनेक राजा और राजकुमार आए थे। यहां तक कि देवताओं के राजा इंद्र भी राजकुमारी के सौंदर्य के वशीभूत हो वहां पधारे थे। स्वयंवर में राजकुमारी माधवी ने राजकुमार अग्रसेन के गले में जयमाला डाल दी। यह दो अलग-अलग संप्रदायों, जातियों और संस्कृतियों का मेल था। जहां अग्रसेन सूर्यवंशी थे वहीं माधवी नागवंश की कन्या थीं।
कुछ समय बाद महाराज अग्रसेन ने अपने प्रजा-जनों की खुशहाली के लिए काशी नगरी जा शिवजी की घोर तपस्या की, जिससे भगवान शिव ने प्रसन्न हो उन्हें माँ लक्ष्मी की तपस्या करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने परोपकार हेतु की गयी तपस्या से खुश हो उन्हें दर्शन दिए और कहा कि अपना एक नया राज्य बनाएं और क्षात्र धर्म का पालन करते हुवे अपने राज्य तथा प्रजा का पालन – पोषंण व रक्षा करें ! उनका राज्य हमेशा धन-धान्य से परिपूर्ण रहेगा|
महाराजा अग्रसेन को पशु व जानवरों जी को काफी प्यार था लेकिन उनके समय में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले व यज्ञ और हवन में पशुओं की बलिदी जाती थी । प्रथा के अनुसार एक बार गोत्र की स्थापना के समय 18 यज्ञ शुरु हुए। प्रथा के अनुसार हर एक यज्ञ में एक पशु की बलि दी जाती थी। लेकिन जब अठारहवें यज्ञ के समय जीवित पशु को बलि के लिए लाया गया तो महाराजा अग्रसेन इस कृत्य से क्रोधित हो गए और वह इससे घृंणा करने लगे। यही कारण है कि अग्रसेन जी ने पूजा पाठ व यज्ञ में जानवरों की बलि का विरोध किया और इसे बंद करवाने के निर्देश दिए। उन्होंने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि अब कोई भी व्यक्ति जानवरों की बलि नहीं देगा और ना ही मास मच्छी का सेवन करेगा। वह इस घटना से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म अपना लिया था।
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