India News (इंडिया न्यूज), Mahila Naga Sadhu: 2013 का इलाहाबाद कुंभ मेला भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का एक अद्भुत मिलाजुला दृश्य था। इस अवसर पर एक नया मोड़ आया जब पहली बार नागा महिला अखाड़े को विशेष पहचान मिली। संगम के तट पर जूना संन्यासिन अखाड़ा स्थापित किया गया, जो महिला नागा साधुओं का घर था। इस अखाड़े की नेता दिव्या गिरी थीं, जिनकी उपस्थिति और संघर्ष ने महिलाओं के आध्यात्मिक और धार्मिक क्षेत्र में अहम बदलाव की दिशा तय की।
महिला नागा साधु का उदय
2004 में, दिव्या गिरी ने विधिवत महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया पूरी की। इस दौरान, उन्होंने अपने लक्ष्य और उद्देश्य को स्पष्ट किया कि वे कुछ नया और अलग करना चाहती हैं। जूना अखाड़ा, जो पहले से ही भगवान दत्तात्रेय के इष्टदेवता के रूप में प्रसिद्ध था, में दिव्या गिरी ने अपनी पूजा पद्धतियों में बदलाव किया। उनका इष्टदेव भगवान दत्तात्रेय की माता, अनुसूया को बनाया, जिससे उनकी पूजा की दिशा में एक नया मोड़ आया।
माता अनुसूया की महिमा
माता अनुसूया की पूजा की वजह से दिव्या गिरी और अन्य महिला नागा साधुओं के बीच एक विशेष आस्थावान रिश्ते की शुरुआत हुई। माता अनुसूया का स्थान भारतीय धार्मिक परंपरा में अत्यधिक सम्मानित है। वे ऋषि अत्रि और भगवान दत्तात्रेय की माता थीं, जिनका पतिव्रता धर्म पूरे विश्व में प्रसिद्ध था।
अनुसूया के पतिव्रता धर्म की गाथा विशेष रूप से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पतिव्रता देवियों से जुड़ी हुई है। तीनों देवियों को यह विश्वास था कि वे अपने पतियों के प्रति सबसे अधिक समर्पित हैं। लेकिन महर्षि नारद ने उन्हें बताया कि धरती पर अनुसूया सबसे बड़ी पतिव्रता हैं। यह खबर तीनों देवियों को चुभी, और उन्होंने निर्णय लिया कि अनुसूया की परीक्षा ली जाए।
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तीन देवियों की परीक्षा
यह परीक्षा असाधारण थी। ब्रह्मा, विष्णु और महेश, इन तीनों देवताओं ने अनुसूया की पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने के लिए उन्हें एक चुनौती दी। परिणामस्वरूप, माता अनुसूया का दर्जा देवी के रूप में और अधिक ऊँचा हो गया, और उन्होंने खुद को साबित किया कि पतिव्रता धर्म के मामले में कोई उनके बराबरी नहीं कर सकता।
महिला नागा साधुओं का अस्तित्व अब भारतीय समाज में एक नई दिशा में बढ़ रहा है। दिव्या गिरी जैसी धार्मिक नेताओं का योगदान और उनके द्वारा चुनी गई इष्टदेवता, माता अनुसूया, यह दिखाता है कि महिला साधुओं की पूजा और सम्मान की परंपरा में अब एक नया अध्याय जुड़ रहा है। यह न केवल धार्मिक क्षेत्र में महिलाओं की अहमियत को दर्शाता है, बल्कि समाज में उनके अधिकारों और सम्मान की दिशा में भी एक कदम आगे बढ़ाता है।
दिव्या गिरी की यह यात्रा और उनका संघर्ष न केवल महिला नागा साधुओं के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है।