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Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति पर किए तुलादान से मिलता है लाभ, जाने इसका महत्व और नियम

PUBLISHED BY: Nishika Shrivastava • LAST UPDATED : January 13, 2024, 3:37 pm IST
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Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति पर किए तुलादान से मिलता है लाभ, जाने इसका महत्व और नियम

Makar Sankranti 2024 Tuladaan

India News (इंडिया न्यूज़), Makar Sankranti 2024: मकर संक्रांति हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। सूर्य देव जब धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति मनाई जाती है। बता दें कि मकर संक्रांति को खिचड़ी, पोंगल, संक्रांति, माघी और उत्तरायण आदि जैसे नामों से भी जाना जाता है। इस साल 2024 में मकर संक्रांति सोमवार 15 जनवरी को है। बता दें कि मकर संक्रांति के दिन लोग पवित्र नदी में स्नान करते हैं, सामर्थ्यनुसार दान देते हैं, सूर्य उपासना करते हैं और पूजा-पाठ आदि का करते हैं। इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने का भी महत्व है। लेकिन इसी के साथ मकर संक्रांति पर तुलादान का भी विशेष महत्व है।

मान्यता है कि मकर संक्रांति पर किए तुलादान से बहुत लाभ होता है। इससे कई गुणा पुण्यफल मिलते हैं, संकटों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। लेकिन सबसे पहले जानते हैं कि आखिर क्या है तुलादान, इसके महत्व और नियम के बारे में।

क्या है तुलादान?

हिंदू धर्म में वैसे तो दान को बहुत ही पुण्य कार्य माना गया है, जिससे ईश्वर भी प्रसन्न होते हैं। दान जीवनकाल में किया गया ऐसा पुण्यकर्म है, जिसका फल मरणोपरांत भी मिलता है। लेकिन सभी दानों में तुलादान को पुण्य दिलाने वाला दान माना जाता है। तुलादान ऐसे दान को कहते हैं, जो व्यक्ति के भार के अनुसार दिया जाता है। तुलादान में आपको स्वयं या जिसके लिए भी आपको दान करना है, उसके वजन के बराबर अनाज का दान किसी जरूरतमंद को कर दें।

तुलादान के नियम

  • तुलादान करते समय इस बात का ध्यान रखें कि, यह दान किसी ऐसे व्यक्ति को ही दें, जो असहाय या जरूरतमंद हो। कभी भी अघाये हुए हो तुलादान न करें, वरना इसका फल नहीं मिलता।
  • मकर संक्रांति पर स्नान के बाद ही तुलादान करें। बिना स्नान किए किसी भी प्रकार का दान नहीं करना चाहिए।
  • तुलादान यदि शुक्ल पक्ष के रविवार को किया जाए तो सबसे उत्तम माना जाता है।
  • मकर संक्रांति पर दान का विशेष महत्व होता है। ऐसे में इस दिन किए तुलादान का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
  • तुलादान में आप अनाज, नवग्रह से जुड़ी चीजें या सतनाज जैसे (गेहूं, चावल, दाल, मक्का, ज्वार, बाजरा, सावुत चना) का दान कर सकते हैं।

कैसे हुई थी तुलादान की परंपरा की शुरुआत

पौराणिक मान्यता के अनुसार, विष्णुजी के कहने पर ब्रह्मा जी द्वारा तुलादान को तीर्थों का महत्व तय करने के लिए कराया था। इसके साथ ही तुलादान को लेकर भगवान कृष्ण से जुड़ी एक धार्मिक व पौराणिक कथा खूब प्रचलित है, जिसके अनुसार एक बार श्रीकृष्ण पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए सत्यभामा ने उन्हें नारद मुनि को दान दे दिया। इसके बाद नारद मुनि कृष्ण को लेकर जाने लगे। इसके बाद सत्यभामा को अपनी भूल का एहसास हुआ। लेकिन सत्यभामा के पास कोई कृष्ण को रोकने का रोई विकल्प भी नहीं था, क्योंकि वह तो पहले ही नारद मुनि को कृष्ण का दान कर चुकी थी।

तब कृष्ण को दुबारा प्राप्त करे के लिए सत्यभामा ने नारद मुनि से इसके उपाय के बारे में पूछा। नारद मुनि ने सत्यभामा से कहा कि वह, भगवान कृष्ण का तुलादान कर दे। इसके बाद एक तराजू लाई गई। तराजू के एक ओर श्रीकृष्ण बैठ गए और दूसरी ओर स्वर्ण-मुद्राएं, आभूषण, अन्न आदि रखे गए। लेकिन इतना सबकुछ रखने के बाद भी कृष्ण की ओर का पलड़ा नहीं तक ​हिला। ऐसे में रुक्मणी ने सत्यभामा को दान वाले पलड़े में एक तुलसी का पत्ता रखने को कहा। जैसे ही सत्यभामा ने दान वाले पलड़े में तुलसी का पत्ता रखा तो तराजू के दोनों पलड़े बराबर हो गए। इस समय श्रीकृष्ण ने ही तुलादान के महत्व के बारे में बताया था।

 

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