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आग से मौत तक का खेल…नागा साधु हर रोज करते है ये काम, सिर्फ इन लोगों को ही मिलता हैं मौका?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : August 31, 2024, 3:49 pm IST
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आग से मौत तक का खेल…नागा साधु हर रोज करते है ये काम, सिर्फ इन लोगों को ही मिलता हैं मौका?

India News (इंडिया न्यूज़), Naga Sadhu: भारत की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक परंपराएँ दुनिया भर में मशहूर हैं। इनमें से एक अद्वितीय और रहस्यमय अभ्यास है, जो विशेष रूप से नागा साधुओं द्वारा किया जाता है। ये साधु अपने कठोर तप और तपस्वी जीवन के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनमें से एक प्रमुख अभ्यास है ‘आग से मौत तक का खेल’। इस अभ्यास की गहराई और महत्व को समझने के लिए आइए इस पर करीब से नज़र डालें।

नागा साधुओं का जीवन और तप

नागा साधु भारत के हेमकुण्ड और हिमालय की पहाड़ियों में रहने वाले उन साधुओं का समूह हैं जो भगवान शिव के उपासक होते हैं। ये साधु अपनी आध्यात्मिक यात्रा को चरम पर ले जाने के लिए कठोर तप करते हैं और एक विशिष्ट जीवन शैली अपनाते हैं। उनका जीवन अत्यंत कठोर होता है, जिसमें वे सांसारिक सुख-सुविधाओं को त्याग कर साधना में लीन रहते हैं।

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आग से मौत तक का खेल

नागा साधुओं के बीच आग से संबंधित अभ्यास एक विशेष रूप से नायाब और रहस्यमय परंपरा है। इसे ‘आग से मौत तक का खेल’ भी कहा जाता है। इस खेल में साधु अपने शरीर को आग के संपर्क में लाकर खुद को अत्यधिक तप और पीड़ा से गुजारते हैं। यह अभ्यास शारीरिक और मानसिक शक्ति की परीक्षा के रूप में देखा जाता है।

  1. आग की परीक्षा: नागा साधु लकड़ी की आग के पास या ऊपर चलते हैं। यह अभ्यास उनके शारीरिक सहनशीलता और आत्म-नियंत्रण को परीक्षण करता है। यह परंपरा उस विश्वास का प्रतीक है कि साधु अपनी आध्यात्मिक शक्ति और तपस्या के माध्यम से आग की गर्मी को सहन कर सकते हैं।
  2. अधिकतम आत्म-नियंत्रण: इस अभ्यास के दौरान साधु अपने शरीर की कठिनाइयों को नियंत्रित करने की क्षमता को दर्शाते हैं। वे न केवल आग की गर्मी को सहन करते हैं, बल्कि इसका सामना करने में मानसिक दृढ़ता और अडिगता का भी प्रदर्शन करते हैं।
  3. आध्यात्मिक उद्दीपन: यह अभ्यास साधु के आध्यात्मिक उद्दीपन का हिस्सा होता है। इसे एक प्रकार की साधना या तपस्या के रूप में माना जाता है, जो साधु की आध्यात्मिक प्रगति और शक्ति को दर्शाता है।

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क्यों सिर्फ कुछ लोगों को ही मिलता है यह मौका?

  1. साधना और तप: यह अभ्यास उन लोगों के लिए विशेष होता है जिन्होंने वर्षों की साधना, तपस्या और आत्म-नियंत्रण के माध्यम से अपनी मानसिक और शारीरिक शक्ति को परखा है। इसे केवल उन साधुओं को ही सौंपा जाता है जिन्होंने अपनी योग्यता को सिद्ध किया है।
  2. प्राकृतिक चयन: केवल वे साधु ही इस अभ्यास को कर सकते हैं जिन्होंने खुद को इस कठोर तपस्या के लिए पूरी तरह से तैयार किया है। इसमें शारीरिक सहनशीलता, मानसिक दृढ़ता, और आध्यात्मिक समर्पण की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
  3. परंपरा और आध्यात्मिक महत्व: यह अभ्यास एक प्राचीन परंपरा का हिस्सा है और इसे एक विशेष आध्यात्मिक अनुष्ठान के रूप में देखा जाता है। यह नागा साधुओं की संस्कृति और परंपरा का महत्वपूर्ण अंग है।

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निष्कर्ष

‘आग से मौत तक का खेल’ नागा साधुओं के तपस्वी जीवन और कठिन साधना का एक अद्वितीय पहलू है। यह अभ्यास उनकी शारीरिक और मानसिक शक्ति का प्रतीक है और उनके आध्यात्मिक समर्पण की ऊंचाइयों को दर्शाता है। इस कठिन और खतरनाक खेल को केवल उन लोगों को ही मौका मिलता है जिन्होंने अपनी तपस्या और साधना से इस योग्यता को प्राप्त किया है। यह न केवल एक व्यक्तिगत परीक्षण है, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का भी अभिन्न हिस्सा है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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