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India News (इंडिया न्यूज),Naga Sadhus: कहते हैं कि स्त्री की सुंदरता उसके खुले बालों में होती है, साधु की सुंदरता उसके तिलक में होती है और नागा की सुंदरता उसकी लंगोटी होती है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह भी लोहे और लकड़ी से बनी होती है, इसका वजन कम से कम पांच किलो होता है। दीक्षा लेने के बाद इसे पहनना जरूरी होता है। नामकरण भी इसी से किया जाता है।
सिंहस्थ में साधुओं का जमावड़ा होता है। हर अखाड़े की अपनी पहचान होती है। नियम-कायदे होते हैं। दिगंबर अखाड़े के रामानंद संप्रदाय से जुड़े साधुओं (महात्यागी) की पहचान उनकी लंगोटी से होती है। जब हमने उनके शिविर में जाकर चर्चा की तो कई रोचक बातें सामने आईं। श्रीमहंत मदन मोहनदास त्यागी ने बताया कि दीक्षा के बाद केले के पत्ते से बनी लंगोटी से यात्रा शुरू होती है। इन्हें केले वाले महात्यागी कहते हैं। इस संप्रदाय में मुंज का जनेऊ धारण करने वाले को मुंज वाले महात्यागी बाबा कहते हैं।
इस जनेऊ को बनाने में कम से कम दो दिन का समय लगता है। इसकी प्रक्रिया काफी लंबी है। ये सूखी घास की माला पहनते हैं। उन्होंने बताया कि संप्रदाय के साधुओं का श्रृंगार भभूत होता है और आभूषण सूखी घास की माला, मुंज का जनेऊ और केले के पत्ते की लंगोटी होती है।
महाकुंभ मेले में नागा साधुओं का जमावड़ा लगना शुरू हो गया है और वैसे तो नागा कोई वस्त्र नहीं पहनते हैं, लेकिन कुछ नागा लकड़ी की लंगोटी पहनते हैं, जबकि कुछ नागा लोहे या चांदी की लंगोटी पहनते हैं। हठ योग के अंतर्गत वे लोहे की लंगोटी, चांदी की लंगोटी या लकड़ी की लंगोटी पहनते हैं। ये लंगोटी पहनना भी तपस्या के समान है। धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान भी वे लंगोटी पहनते हैं। ये लोग अपने शरीर को ढकने के लिए राख का इस्तेमाल करते हैं। नागा साधु बनने के अंतिम चरण में उन्हें लिंग भंग की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया के बाद वे कभी-कभी लकड़ी या लोहे की लंगोटी पहनते हैं।
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