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Neem Karoli Baba: बाबा नीम करौली ने नदी के जल को बना दिया घी, विवेकानंद से भी जुड़ा है गहरा नाता

Neem Karoli Baba: कैंची धाम नीम करोली बाबा से जुड़े चमत्कारों का केंद्र माना जाता है. बाबा के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी कहानियां यहां के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं. ऐसी ही एक कहानी इस उत्तरवाहिनी नदी से जुड़ी है. आइए जानते हैं इसके बारे में.

Written By: Shivashakti narayan singh
Last Updated: December 16, 2025 19:34:33 IST

Neem Karoli Baba: उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम पूरे भारत में आस्था का एक प्रमुख केंद्र बन गया है. हर साल लाखों भक्त बाबा नीम करोली का आशीर्वाद लेने और उनके चमत्कारों का अनुभव करने यहाँ आते हैं. बाबा के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी कहानियाँ आज भी लोगों के बीच जीवित हैं. ऐसी ही एक कहानी उत्तरवाहिनी शिप्रा नदी से जुड़ी है, जो आज भी कैंची धाम के पास बहती है और रहस्य, भक्ति और शांति का प्रतीक मानी जाती है.

कहा जाता है कि एक बार, कैंची धाम में 15 जून को होने वाले सालाना भंडारे के दौरान, अचानक घी की भारी कमी हो गई. भक्त चिंतित थे क्योंकि प्रसाद के लिए घी ज़रूरी था. आस-पास के इलाकों से घी लाने की कोशिशें नाकाम रहीं. तब बाबा नीम करोली ने शिप्रा नदी से पानी लाने का आदेश दिया. जैसे ही भक्त नदी से पानी लाए और उसे बाबा के सामने रखा, उन्होंने पानी को आशीर्वाद दिया और कहा, “अब यह घी है, जाओ और इससे प्रसाद बनाओ.” हैरानी की बात यह है कि पानी सच में घी में बदल गया. उस घी से मालपुए बनाए गए और भंडारा सफलतापूर्वक पूरा हुआ. भंडारे के बाद, बाबा ने कहा कि जितना घी उन्होंने शिप्रा नदी से लिया था, उतना ही वापस नदी में डाल दिया जाए, जिसके बाद घी को वापस शिप्रा नदी में डाल दिया गया.

मोक्ष देने वाली, पापों का नाश करने वाली

यह चमत्कार शिप्रा नदी के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व को और बढ़ाता है. यह शिप्रा नदी, जो भवाली से होकर बहती है, एक उत्तरवाहिनी नदी है, जिसका मतलब है कि यह दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है. भारत में ज़्यादातर नदियां उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं, इसलिए उत्तरवाहिनी नदियों को अत्यंत पवित्र और दुर्लभ माना जाता है. इस नदी का विशेष रूप से स्कंद पुराण के मानस खंड में उल्लेख किया गया है और इसे मोक्ष देने वाली और पापों का नाश करने वाली बताया गया है. 

भवाली शहर की जीवनरेखा

यह नदी भवाली के श्यामखेत के देवदार और चीड़ के जंगलों से निकलती है. यह नदी भवाली शहर के लिए जीवनरेखा है. कहा जाता है कि बाबा नीम करोली अक्सर शिप्रा नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठकर ध्यान करते थे. स्वामी विवेकानंद ने भी उत्तराखंड यात्रा के दौरान इस नदी के किनारे ध्यान किया था. आज भी यह नदी भक्तों के लिए उतनी ही पवित्र है जितनी सदियों पहले थी. इसे सिर्फ़ एक नदी नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कारों की धारा माना जाता है, और इसे बचाना सबकी ज़िम्मेदारी है.

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