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India News (इंडिया न्यूज),Shardiya Navratri 2024: शारदीय नवरात्रि का हिंदु धर्म में विशेष महत्व है। यह त्योहार पूरे भारत में बड़ी धूमधाम और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह व्रत देवी दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित है। नौ दिनों तक चलने वाला यह त्योहार अश्विन माह में मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार इसकी शुरुआत (शारदीय नवरात्रि 2024) 3 अक्टूबर यानी आज से है। भारतीय सनातन संस्कृति में त्योहारों और उनके उत्सवों के विधान शास्त्रों में व्यवस्थित किए गए हैं। धार्मिक परंपराओं के साथ-साथ इसमें वैज्ञानिक रहस्य भी छिपे हैं। इन रहस्यों के बीच यह सवाल उठता है कि नवरात्रि में जौ क्यों बोया जाता है?
तैत्तिरीय उपनिषद में अन्न को देवता कहा गया है- अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्। वहां अन्न की निंदा और उसके तिरस्कार के लिए निषेध किया गया है- अन्नं न निन्द्यात् तद् व्रता्। ऋग्वेद में बहुत से अन्नों का वर्णन है, जिसमें यव अर्थात जौ की गणना भी हुई है। मीमांसा का एक श्लोक जौ की महत्ता बताता है कि वसंत ऋतु में सभी फसलों के पत्ते झड़ने लगते हैं पर मद शक्ति से भरे हुए जौ के पौधे दानों से भरे कणिश (बालियां) के साथ खड़े रहते हैं। संस्कृत भाषा का यव शब्द ही जव उच्चरित होते हुए जौ बन गया। जौ धरती को उपजाऊ बनाने का सबसे अच्छा साधन या उदाहरण है।
नवरात्रि दो ऋतुओं के संक्रमण काल का नाम है। चैत्रीय नवरात्रि सर्दी और गर्मी का संधि काल है और आश्विन नवरात्रि गर्मी और सर्दी का संधिकाल है। दोनों संधिकाल में रबी और खरीफ की फसलें तैयार होती हैं। इसीलिए भूमि की गुणवत्ता जांचने और आने वाली फसल कैसी होगी यह देखने के लिए जौ उगाया जाता है? अगर सभी अनाज भूमि में एक साथ उगाए जाएं तो सबसे पहले जौ धरती से निकलेगा यानी सबसे पहले जौ अंकुरित होगा।
पौराणिक मान्यताओं में जौ को अन्नपूर्णा का स्वरूप माना जाता है। जौ सभी ऋषियों में सबसे प्रिय अनाज है। इसीलिए जौ से ऋषि तर्पण किया जाता है। पुराणों में कथा है कि जब जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की तो वनस्पतियों में सबसे पहले जौ उगने वाली फसल थी। इसीलिए जौ को पूर्ण शस्य यानी पूरी फसल भी कहा जाता है। यही वजह है कि नवरात्रि में देवी दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए जौ उगाया जाता है। किसी को फसल दान करना शुभ और लाभकारी माना जाता है। नवरात्रि पूजन में जौ उगाने का शास्त्रोक्त नियम है, जिससे सुख, शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। जौ को देवकार्य, पितृकार्य और सामाजिक कार्यों के लिए अच्छा माना जाता है। वैदिक काल में खाने के लिए बनाई जाने वाली यवगु (लापसी) से लेकर आज रबड़ी बनाने तक, जौ का उपयोग पौष्टिक और पुष्टिकारक माना जाता है।
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