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द्रौपदी ही नहीं, कलियुग में अन्याय की इन कहानियों से हर किसी को लेना चाहिए सबक

Babli • LAST UPDATED : September 13, 2024, 12:31 pm IST

Mahabharata stories

India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharata stories: महाभारत के महायुद्ध को आज भी अधिकतर लोग न्याय और अन्याय के बीच हुए युद्ध के तौर पर याद करते हैं, लेकिन महाभारत युद्ध के होने का सबसे बड़ा कारण द्रौपदी के हुए अपमान को भी माना जाता है। हस्तिनापुर के राजमहल में भरी सभा में जिस तरह द्रौपदी का अपमान किया गया था, अपने अपमान के प्रतिशोध में द्रौपदी ने पांचो पांडव के सामने प्रतिज्ञा ली थी कि जब तक दुर्योधन और दुशासन के खून से उसके बाल नहीं सींच दिए जाते, द्रौपदी अपने बाल नहीं खोलेगी।

  • भीष्म ने किया था अम्बा का अपमान
  • पुर्नजन्म में अंबा बनी शिखंडी ने प्रतिशोध लिया
  • अभिमन्यु की माँ सुभद्रा का प्रतिशोध पूरा हुआ

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भीष्म ने किया था अम्बा का अपमान

अंबा काशी के राजा की सबसे बड़ी पुत्री थी। भीष्म ने अंबा, अंबिका और अंबालिका नाम की तीनों बहनों का अपहरण कर उनका विवाह अपने सौतेले भाई से करने के लिए किया था लेकिन अंबा ने भीष्म से कहा कि वह शाल्व देश के राजा से प्रेम करती है और उनसे विवाह करेगी। यह सुनकर भीष्म ने अंबा को वापस भेज दिया लेकिन शाल्व देश के राजा ने अपहृत कन्या से विवाह करने से इनकार कर दिया। तब अंबा हस्तिनापुर लौट आई और भीष्म से विवाह करने का अनुरोध किया। भीष्म ने अंबा को अपनी प्रतिज्ञा के बारे में बताया लेकिन अंबा ने कहा, “हे भीष्म! आपने अपने स्वार्थ में ऐसा कदम उठाया, जिसके कारण मुझे हर जगह अपमानित होना पड़ा। मुझे एक वस्तु की तरह एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जा रहा है। मैं आपसे अपने अपमान का बदला अवश्य लूंगी।”

अंबा भीष्म से युद्ध करने के लिए अनेक देशों के राजाओं के पास गई और भीष्म से युद्ध करने का अनुरोध किया तथा अपने लिए न्याय मांगा। कुछ राजा अंबा की पीड़ा को समझते थे लेकिन कोई भी भीष्म से शत्रुता नहीं रखना चाहता था। इसका कारण यह था कि भीष्म बहुत ही पराक्रमी योद्धा थे तथा उन्होंने परशुराम जी से शिक्षा और युद्ध कौशल सीखा था इसलिए कोई भी भीष्म से युद्ध कर नष्ट नहीं होना चाहता था। अंत में सभी ओर से हार मान चुकी अंबा ने अंत में भगवान शिव की कठोर तपस्या की।

तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने अंबा से वरदान मांगने को कहा तब अंबा ने भीष्म की मृत्यु का वरदान मांगा। भगवान शिव ने अंबा को नीले फूलों की एक माला दी तथा कहा कि जो भी योद्धा इस फूलों की माला को पहनेगा वही भीष्म से युद्ध कर सकेगा। अंबा फिर से इस माला को पहनने वाले राजा की तलाश करने लगी लेकिन उसे कोई नहीं मिला। तब मरणासन्न अंबा ने वह माला राजा द्रुपद के महल के बाहर लटका दी तथा अपने प्राण त्याग दिए।

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पुर्नजन्म में अंबा बनी शिखंडी ने प्रतिशोध लिया

समय बीतने के साथ राजा दुपद्र की पत्नी के गर्भ से एक बालक ने जन्म लिया। जो जन्म के समय नपुंसक था। पुरुष और स्त्री दोनों तत्वों की उपस्थिति के कारण राजा दुपद्र ने इस बालक का पालन-पोषण एक पुरुष की तरह किया। उसका नाम शिखंडी रखा गया। एक दिन शिखंडी की नजर महल के दरवाजे पर लटकी फूल माला पर पड़ी, जिसे अंबा ने दरवाजे के ऊपर लटका दिया था। इस माला को शिखंडी ने अपने गले में पहन लिया। माला पहनते ही शिखंडी को सारी बात याद आ गई और जब महाभारत के युद्ध में शिखंडी ने भीष्म पर बाण चलाना शुरू किया तो भीष्म ने कहा कि वह अपना शस्त्र केवल पूर्णतया पुरुष योद्धा पर ही उठाते हैं और शिखंडी में भी स्त्री तत्व हैं, इसलिए शिखंडी विचित्र लक्षणों वाली स्त्री है। अंत में भीष्म ने शस्त्र नहीं उठाया और इस तरह शिखंडी और अर्जुन के प्रहार से भीष्म बुरी तरह घायल हो गए और कुछ दिनों बाद अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिए।

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अभिमन्यु की माँ सुभद्रा का प्रतिशोध पूरा हुआ

महाभारत के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में अभिमन्यु का नाम शामिल है। अभिमन्यु को मारने में कर्ण, दुर्योधन, अश्वत्थामा, जयद्रथ, द्रोणाचार्य जैसे कई महान योद्धा शामिल थे लेकिन जयद्रथ ही मुख्य था जिसने अभिमन्यु की मृत्यु की साजिश रची थी। जब अभिमन्यु की मृत्यु की खबर अर्जुन की पत्नी और अभिमन्यु की मां सुभद्रा तक पहुंची तो सुभद्रा ने एक दूत भेजकर अर्जुन को यह समाचार सुनाया कि “ऐसे महान योद्धा को छल से मारना न केवल युद्ध नियमों का अपमान है बल्कि एक मां का अपमान करने जैसा है, इसलिए यदि अर्जुन अगले दिन तक जयद्रथ को नहीं मारता है, तो सुभद्रा भी अपने प्राण त्याग देगी।” इसके बाद अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और जयद्रथ का वध कर दिया। इस तरह सुभद्रा का बदला पूरा हुआ।

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