(इंडिया न्यूज़): सनातन धर्म में प्रकृति के बीच एक अनूठा ही रिश्ता है। जो एक दूसरे पर आश्रित है। सनातन धर्म से संबंधित कई ऐसे नियम और मान्यताएं हैं जो ये बताती हैं कि प्रकृति को किसी भी सनातन धर्म के अनुयायी के जीवन से अलग नहीं किया जा सकता। सनातन धर्म में प्रकृति के ऐसे कई पेड़-पौधे, नदियां और पर्वत हैं जिसको धर्म से जोड़ा गया है, जिसको पवित्र माना गया है। इन्हीं में से एक है पीपल का वृक्ष, जिसे कभी प्रेत-आत्माओं का तो कभी शनि ग्रह, हनुमान जी,श्री हरी विष्णु और महादेव शिव का निवास माना जाता है। ऐसा माना जाता है शनिवार के दिन पीपल के सामने दीया जलाने से शनि दोष से मुक्ति मिलती है। इसे कलयुग का कल्पवृक्ष माना जाता है जिसमें आत्मा, देवताओं के साथ-साथ पितरों का भी वास है।
जो व्यक्ति पीपल की एक डाल भी तोड़ता या काटता है, उनके पितृ को कष्ट झेलने पड़ते और वंश वृद्धि करने में बाधा आती है। वैसे पूरे विधि-विधान और नियम के अनुसार पूजन या हवानादी करवाने के बाद क्षमा मांग कर पीपल की लकड़ी काटी जाए तो दोष नहीं लगता। सुबह-सुबह मतलब ब्रह्ममुहुर्त में मंदिर जाना शुभ होता है किन्तु इस समय पीपल को जल ना चढ़ाएं क्योंकि ब्रह्म मुहुर्त में पीपल के वृक्ष में दरिद्रा का वास होता है। पीपल के वृक्ष पर जल सूर्योदय के बाद ही चढ़ाना चाहिए। जिससे आपके ऊपर माता लक्ष्मी की कृपा द्रष्टि सदा बनी रहे।
पुराणों के अनुसार जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करता है उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साथ ही शत्रुओं का नाश भी होता है। पीपल के वृक्ष की पूजा करने से ग्रह दोष बाधा शांत होती है और काल सर्प दोष, पितृदोष शांत रहते है। अमावस्या और शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे दीया जलाने और हनुमान चालीसा का पाठ करने से अनेक प्रकार के कष्टों से आराम मिलता है। ऐसा करने से परिवार में खुशहाली और समृद्धि भी आती है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति पीपल के वृक्ष का रोपण करता है उसे भौतिक संसार से मुक्ति प्राप्त होती है। वह जीवन-मरण के चक्रों से मुक्त होकर मोक्ष धाम को प्राप्त करता है।
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