Pitra Paksh 2025 Narayan Bali: भारतीय संस्कृति में पितरों की पूजा, श्राद्ध और तर्पण की परंपरा बहुत प्राचीन है. मान्यताओं के अनुसार पूर्वजों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है. श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि के साथ ही ‘नारायण बलि’ भी जरूरी कर्म बताया गया है. ये खासतौर पर उन आत्माओं के लिए किया जाता है जो प्रेत की अवस्था में भटक रही हों.
नारायण बलि क्या है?
शास्त्रों में कहा गया है कि यदि किसी ज्ञात मृतक आत्मा, यानी जिसका नाम और गोत्र पता हो तथा मृत्यु का कारण भी आप जान सकते हैं, और वह प्रेत की अवस्था में हों तो उनके उद्धार के लिए नारायण बलि का विधान किया जाता है. अगर किसी की आकस्मिक मृत्यु हो जाती है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी आत्मा को शांति न मिली हो और वो भटक रही हो. वहीं बात करें नारायण बलि की तो कर्मविधान जरूरी हो जाता है.
कब करना चाहिए नारायण बलि?
नारायण बलि केवल मृत्यु के बाद शांति के लिए ही नहीं, बल्कि परिवार के जीवन में आ रही अनेक समस्याओं को दूर करने के लिए भी जरूरी माना गया है. शास्त्रों के अनुसार कहा गया कि-
- घर में बार-बार अगर रोग बढ़े और धन व्यर्थ खर्च हो
- संतान कुमार्गगामी हो जाए
- विवाह में बाधाएं आएं
- पति-पत्नी में निरंतर कलह और झगड़े हों
- घर में अशांति और अज्ञात भय का वातावरण हो
- अचानक आर्थिक रुकावटें आने लगें
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श्राद्ध कर्म का सामान्य महत्व
वैदिक परंपरा में ये नियम है कि किसी भी बड़े शुभ कार्य से पहले नांदीमुख श्राद्ध किया जाए. इसका आशय यह है कि जब तक हमारे पितर तृप्त और प्रसन्न नहीं होंगे, तब तक हमारे जीवन में शांति नहीं होगी. किसी न किसी तरीके से हमें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. शास्त्रों में वर्णन किया गया है कि कुछ आत्माएं मृत्यु के बाद भी मोह के कारण संसार में भटकती रहती है. जो परिवार में रोग, कलह, टकराव, तनाव और अशांति का कारण बनती है.
ऐसी आत्माएं अपनी मुक्ति चाहकर भी प्राप्त नहीं कर पाती. वे व्यक्ति को धार्मिक और शास्त्रोक्त पूजन से दूर करने का प्रयास करती हैं. इनका समाधान केवल शास्त्र में वर्णित विधि में संभव है, और इसके लिए ‘नारायण बलि‘ सबसे प्रभावी उपाय है.