Kab Hai Pitru Paksha Amavasya 2025: पितृपक्ष के अंतिम दिन पितृ अमावस्या होती है और इस दिन उन पितरों का भी श्राद्ध किया जा सकता है, जिनकी मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो, यह श्राद्धकर्म करने वाले और पितरों सभी के लिए पुण्यदायी एवं मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है. शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ पक्ष की समाप्ति पर पितृगण पितृलोक की ओर प्रस्थान करते हैं. आश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पितृगण अपने वंशजों के यहां धरती पर अवतरित होते हैं और आश्विन अमावस्या की शाम समस्त पितृगणों की वापसी उनके गंतव्य की ओर होने लगती है. इस वर्ष पितृ अमावस्या 21 सितंबर रविवार के दिन होगी.
इस तरह से करें पितरों से प्रार्थना
माना जाता है कि पितृगण सूर्य और चंद्रमा की रश्मियों के कारण वापस चले जाते हैं. ऐसे में वंशजों द्वारा प्रज्जवलित दीपों से पितरों की वापसी की मार्ग दिखाई देता है और वह आशीर्वाद के रुप में सुख- शांति प्रदान करते हैं. पितृ विसर्जनी अमावस्या के दिन शाम के समय पितरों को भोग लगाकर घर की दहलीज पर दीपक जलाकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, ‘हे पितृदेव! जाने-अनजाने में जो भी भूल-चूक हुई हो, उसे क्षमा करें और हमें आशीर्वाद दें कि हम अपने जीवन को शांतिपूर्वक निर्वाह कर सकें.
41 पितरों के तर्पण का है विधान
पितृ अमावस्या की सबसे खास बात यह है कि जिन लोगों के माता-पिता का देहावसान अमावस्या के दिन हुआ हो अथवा उनका भी जिनके गुजरने की तिथि मालूम नहीं होती उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन किया जा सकता है. इस दिन मध्यान्ह काल में स्नान कर पितरों का श्राद्ध तर्पण करना चाहिए. सभी पितरों के निमित्त ब्राह्मण भोजन का विधान है. विसर्जन के समय पिता, पितामह, माता आदि 41 पितरों के तर्पण का विधान है. पितृवंश, मातृवंश, गुरुवंश, श्वसुर वंश और मिर्तवंशो के पितरों का श्राद्ध भी इस दिन किया जा सकता है.
पितर प्रसन्न तो सारे देवता भी होते है प्रसन्न
पवित्र नदियों के तट पर जाकर गोधूलि बेला में पितरों के निमित्त दीपदान करना आवश्यक है. नगर में नदी, जलाशय न हो, तो पीपल के वृक्ष के नीचे दीप जलाए जा सकते हैं. दक्षिण दिशा की ओर दीपक की लौ रखकर सोलह दीपक जलाए जा सकते हैं और इनके पास पत्तलों में पूरी, मिठाई, चावल, दक्षिणा आदि रखकर दोनों हाथ ऊपर कर दक्षिण दिशा की ओर पितरों को विदाई दी जाती है. श्वेत रंग के पुष्प छोड़ते हुए पितरों को एक वर्ष के लिए विदा किया जाता है. शास्त्र कहते हैं कि ‘पितरं प्रीतिमापन्न प्रीयंते सर्वदेवता’, अर्थात् पितरों के प्रसन्न रहने से ही सारे देवता प्रसन्न होते हैं. तभी मनुष्य के सारे जप,तप, पूजा- पाठ, अनुष्ठान, साधना आदि सफल होते हैं, अन्यथा उन्हें लाभ नहीं मिलता है.
आयुः प्रजां धनं विद्यानां, सर्वगम् मोक्षं सुखानि च प्रयच्छन्ति तथा राज्यं पितरः श्राद्ध तर्पिताः..
(श्राद्ध प्रकाश/यम स्मृति) अर्थात् श्राद्ध से तर्पित हुए पितर हमें आयु, संतान,धन, स्वर्ग, मोक्ष, सुख तथा राज्य देते हैं. स्पष्ट है कि पितरों की कृपा से सब प्रकार की समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.