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बच्चे भोगते हैं अपने माता-पिता के कर्मों का फल? जानें इसपर क्या कहते हैं स्वामी प्रेमानंद महाराज

Himanshu Pandey • LAST UPDATED : September 2, 2024, 12:50 am IST

Premanand Ji Maharaj

India News (इंडिया न्यूज),Swami Premanand Maharaj: माता-पिता बच्चों को इस दुनिया में लाते हैं, उनका पालन-पोषण करते हैं और उन्हें जीने लायक बनाते हैं। सनातन धर्म में माता-पिता को बच्चों का पहला गुरु कहा जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि बच्चों को अपने माता-पिता के कर्मों का फल भोगना पड़ता है। कई लोग इस बात को लेकर असमंजस में रहते हैं कि क्या वाकई ऐसा होता है। वृंदावन के स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने इस सवाल का बड़े विस्तार से जवाब दिया है। आइए जानते हैं कि स्वामी प्रेमानंद जी महाराज माता-पिता के कर्मों के बारे में क्या कहते हैं और क्या वाकई वे मान्य हैं।

बच्चे अपने माता-पिता के कर्मों का फल भोगते हैं

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि यह सच है कि बच्चों को अपने माता-पिता के कर्मों का फल भोगना पड़ता है। स्वामी प्रेमानंद जी ने बताया कि जिस तरह माता-पिता अपने बच्चे को जन्म देते हैं, उसे संस्कार देते हैं, उसे अपनी संपत्ति और धन देते हैं, उसी तरह वे अपने बच्चों को भी अपने कर्मों का फल देते हैं। बच्चों को माता-पिता के अच्छे कर्मों का फल संस्कार के रूप में मिलता है। वहीं, माता-पिता के बुरे कर्मों का फल बच्चों को भोगना पड़ता है और वे जीवन में कष्ट भोगते हैं। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि अगर माता-पिता अपने बच्चों का सुखमय जीवन चाहते हैं तो उन्हें अपने कर्म अच्छे और शुद्ध रखने चाहिए। इससे उनका जीवन सुखमय होगा और उनके बच्चे भी खुशहाल रहेंगे और घर में कभी किसी को कोई परेशानी नहीं होगी और घर में हमेशा शांति बनी रहेगी, बस आपको अपने कर्मों पर विश्वास रखना होगा।

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कौन हैं स्वामी प्रेमानंद जी महाराज?

स्वामी प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन से हैं और उनका जन्म कानपुर में हुआ था। पिछले कुछ दिनों से स्वामी प्रेमानंद जी महाराज काशी में रह रहे हैं और वहां स्वामी जी भगवान शिव की भक्ति में लीन हैं। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज सत्संग करते हैं और उनके कई वीडियो सोशल मीडिया पर खूब देखे और सुने जाते हैं। राधा रानी को अपनी आराध्य मानने वाले स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के सोशल मीडिया पर कई फॉलोअर्स हैं जो उनके सत्संग को बड़ी दिलचस्पी और ध्यान से सुनते हैं। महज 13 साल की उम्र में घर छोड़ने वाले स्वामी प्रेमानंद जी महाराज के गुरु श्री गौरांगी शरण जी महाराज हैं। स्वामी प्रेमानंद जी महाराज का मन पांचवीं क्लास से ही आध्यात्म की ओर लग गया था और उन्होंने तभी से गीता का पाठ करना शुरू कर दिया था।

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