Premanand Ji Maharaj Pravachan : व्यक्ति की जिंदगी का लेखा जोखा उसकी जन्म कुंडली (या जन्मपत्री) में लिखा होता है. जब व्यक्ति का जन्म होता है और जन्म के समय सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की स्थिति के अधार पर व्यक्ति की जन्म कुंडली बनती है. यह एक तरह का ज्योतिषीय चार्ट होता है, जिसमें 12 भाव होते हैं, जो व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे करियर, स्वास्थ्य, विवाह और भाग्य का प्रतिनिधित्व करते हैं. लेकिन क्या जन्म कुंडली बनानी जरूरी है? अगर जन्म कुंडली ना हो तो क्यां होगा. चलिए इस पर प्रेमानंद महाराज जी का जवाब
कुड़ली से क्या होता हैं?
हिंदू धर्म शास्त्र की मान्यताओं के ग्रहों की चाल असर भी के जीवन पर होता है. शादी से लेकर करियर समेत कई पहलुयों का पहले से पता लगाने के लिए कुंडली का इस्तेमाल किया जाता है. कई लोग शादी-ब्याह में जोड़ो की कुंडली भी मिलवाते हैं, वहीं कुछ लोग कुंडली पर विश्वास नहीं करती है. इसी से जुड़ा एक सवाल किसी भक्त ने प्रेमानंद महाराज जी से पूछा, क्या कुंडली बनाना वाकई में जरूरी है? इस पर वृंदावन के जाने-माने संत प्रेमानंद महाराज ने अपने प्रवचन पर जवाब देते हुए कहा- ब्याह वगैरह करना है तो जरूरी होता ही है.
कुड़ली होना क्यों जरूरी है- प्रेमानंद महाराज
प्रेमानंद महाराज ने आगे कहा- घर में ब्याह होना है तो जन्म कुंडली इत्यादि की जरूरत पड़ती ही है. लेकिन आज के समय में कौन कुंडली देखता है? पहले शादी से पहले सब पुछते थे कि कितने गुण मिलते हैं? ये सब अब कहां चल रहा है. लव मैरिज, लिवइन रिलेशन… इन सब में कुंडली की क्या जरूरत पड़ती है. लेकिन फिर भी कुंडली बनवा लेना चाहिए. ये शास्त्रीय पद्धिति और विचार आदि के लिए ये जरूरी होती है.
कुंडली मिलने के बाद भी होती है लड़ाईयां
इस पर फिर एक शख्स ने प्रेमानंद महाराज से कहा शादी से पहले कुंडली मिलने के बाद भी बहुत लड़ाइयां होती है. इस पर प्रेमानंद महाराज ने जवाब देते हुए कहा- लड़ाइयां तो तब बंद होंगी जब सद्विचार होंगे. कुंडली से थोड़े लड़ाइयां खत्म होती है, आप सद्विचार होंगे तभी तो मंगल विचार होगा. अगर पत्नी कटु बोल रही है, तो हम थोड़ा कम हो गए. ये सोचकर जीवनसाथी बढ़िया मंगलमय जीवन जिएं. जीवन को प्यार से चलाना चाहिए. लड़ने से कोई हल नहीं मिलता है. प्रेमानंद महाराज ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा- अगर पत्नी किसी बात से खुश या संतुष्ट नहीं है, तो पति का कर्तव्य है कि उसे संतुष्ट जरूर करना चाहिए. जरूरी ये है कि समस्या को समझा जाए. मारना, हाथ उठाना… ये सब राक्षसी व्यवहार है. एक-दूसरे की कमियों को सहकर आगे बढ़ना ही सबसे अच्छा होता है.
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