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India News (इंडिया न्यूज),Premanand Ji Maharaj: राधारानी के परम भक्त और वृंदावन के प्रेमानंद जी महाराज को कौन नहीं जानता। वे आज के समय के प्रसिद्ध संत हैं। यही वजह है कि उनके भजन और सत्संग सुनने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। प्रेमानंद जी महाराज की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है। कहा जाता है कि भोलेनाथ स्वयं प्रेमानंद जी महाराज के सामने प्रकट हुए थे। इसके बाद वे घर छोड़कर वृंदावन आ गए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्रेमानंद जी महाराज ने अपना साधारण जीवन छोड़कर भक्ति का मार्ग क्यों चुना और महाराज जी कैसे संन्यासी बन गए। आइए जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज के जीवन के बारे में।
प्रेमानंद जी महाराज संन्यासी बनने के लिए अपना घर छोड़कर वाराणसी आ गए और यहीं अपना जीवन व्यतीत करने लगे। अपने संन्यासी जीवन की दिनचर्या में वे दिन में तीन बार गंगा स्नान करते थे और तुलसी घाट पर भगवान शिव और मां गंगा का ध्यान और पूजन करते थे। वे दिन में केवल एक बार ही भोजन करते थे। प्रेमानंद जी महाराज भिक्षा मांगने के बजाय भोजन पाने की इच्छा से 10-15 मिनट तक बैठते थे। इस दौरान अगर उन्हें भोजन मिल जाता था तो वे उसे खा लेते थे, अन्यथा वे केवल गंगाजल पीते थे। अपने संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद जी महाराज ने कई दिन भूखे भी बिताए।
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प्रेमानंद जी महाराज ने बताया की उन्हें भी रोना पड़ा है, और चिल्ला-चिल्ला के रोना पड़ा है। मंदिर के टिले पर बैठ कर रोना पड़ है कि हे राधरानी, व्रिंदावन किशोरी मुझे व्रिंदावन निवास का एक कोना देदो जहां मै रह सकूं। स्वांस की भी समस्या थी तो सोचा काशी चलें व्रिंदावन में स्थान नही है। लेकिन फिर हम लौटे और उसके बाद प्रेमानंद जी महाराज ने आस-पास के लोगों से पूछा की क्या यहां निवास स्थान है, उसके बाद भी उन्हों कोई स्थान नही मिला तो प्रेमानंद महाराज को एक संत ने आश्रम में स्थान दिया।
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