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India News (इंडिया न्यूज), Radha Krishna Katha: भारत और विश्व के कई हिस्सों में लड्डू गोपाल का जन्म दिवस बहुत धूमधाम और चहल-पहल के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी का ये शूभ अवसर भाद्रपद महिने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हर साल मनाया जाता है। कान्हा से संबंधि कई प्रचलित कहानियां हैं। पूराणों के अनुसार, श्रीकृष्ण की 16108 गोपियां थीं। जिनमें से उनकी दूसरी पत्नी का नाम था सत्यभामा। सत्यभामा बहुत घमंड से भरी थीं पर एक बार श्रीकृष्ण ने उनका घमंड चूर कर दिया था। आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे की कहानी-
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सत्यभामा का ये मानना था कि वो सबसे सुंदर और धनी हैं क्योंकि उनके पिता के पास बहुत धन था। सत्यभामा ने अपने पास विभिन्न तरह के आभूषण और रत्न रखे थे। सत्यभामा का घमंड ही उनकी सबसे बड़ी समस्या थी। एक बार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिवस के समय सत्यभामा ने विचार किया कि वो सबके सामने दिखाएगीं कि वो श्रीकृष्ण से अतयंत प्रेम करती हैं। तो उन्होने निच्श्रित किया कि वह भगवान श्रीकृष्ण के भार जितना आभूषण पूरे शहर के लोगों दान देंगी, जिसे तुलाभार प्रथा से जाना जाता है। असल में, ये तुलाभार प्रथा उस समय में मंदिरों में हुआ करती थी। तब लोग तराजू में अपने वजन के अनूसार घी या चावल या अन्य चीजें रखकर लोगों को दान करते थे।
सत्यभामा ने तराजू की व्यवस्था करवाई। बहुत लोग मोहित हुए लेकिन, श्रीकृष्ण पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा वो जाकर तुलाभार की एक तरफ विराजमान हो गएय़ सत्यभामा इस बात से अवगत थी कि श्रीकृष्ण का वजन कितना है और उन्होने उतना सोना तैयार भी रखा था। लेकिन जब सत्यभामा सोना दूसरे तरफ रखा तो श्रीकृष्ण का कांटा बिलकूल नहीं हिला। ऐसी ही घटना तब भी हुई थी जब श्रीकृष्ण अपनी बाल अवस्था में थे। एक राक्षस उन्हें उठाकर ले जाने लगा। तब बाल श्रीकृष्ण ने अपना वजन बढ़ा लिया था कि राक्षस उन्हे उठा नही पाया और वहीं गिर पड़ा और श्रीकृष्ण ने उसके ऊपर खड़े हो कर कुचल दिया था।
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वैसे हीं इस बार भी उन्होने अपना वजन बढ़ा लिया और जाकर तराजू पर बैठ गए। सत्यभामा ने अपनी जानकारी के अनूसार उतना सोना दूसरे तरफ रख दिया जो श्रीकृष्ण के वजन के समान था, लेकिन तराजू का कांटा टस से मस नही हुआ। शहर के सभी लोग इस घटना को देखने के लिए पहूंच गए थे। जिसके बाद सत्यभामा ने अपने दास को भेज के सारे गहने मंगवा लिए जो उनके पास थे। एक-एक करके वो सारे गहने डालती जा रही थी और सोच रही थी कि अब उनके वजन के बराबर हो जाएगा लेकिन ऐसा नही हुआ। तब उन्होने सब कुछ रख दिया जो उनके पास था लेकिन फिर भी पलड़ा नहीं हिला। जिलके बाद सत्यभामा रोने लगी और सभी के सामने शर्मसार हो गई थी। सभी लोग देख रहे थे और लेकिन उनके पास पर्याप्त आभूषण नहीं थे।
उस समय उन्होने रुक्मिणी की तरफ देखा, जिनसे वो बहुत ईर्ष्या करती थी। उन्होने रुक्मिणी से पूछा, “अब मैं क्या करूं ये बात मेरे लिए ही नहीं हम सब के लिए भी बहुत शर्मसार करने वाली है” तब रुक्मिणी बाहर गई और तुलसी पौधे के तीन पत्ते ले आई। जैसे ही तुलसी के पत्ते तराजू के दूसरे तरफ रखे, श्रीकृष्ण का पलड़ा तुरंत ऊपर चला गया। जिसके बाद सत्यभामा ने अपनी गलती का एहसास किया।
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