India News (इंडिया न्यूज़), Ramayana Maa Sita: रामायण की यह कथा काकभुशुंडी जी से संबंधित है। काकभुशुंडी एक महान ऋषि थे जो कौवे के रूप में भगवान राम की कथा सुनाते थे। एक बार काकभुशुंडी ने माता सीता के चरणों में भगवान राम के प्रेम का अनुभव किया। यह देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ और उन्होंने माता सीता की महिमा का बखान किया।
इससे संबंधित एक लोककथा के अनुसार, एक बार माता सीता अपने महल में थीं और एक कौवा उनके पास आया। माता सीता को कौवे के रूप में आए ऋषि काकभुशुंडी की पहचान हो गई और उन्होंने कौवे को अपने हाथ से चावल का दाना खिलाया। जब कौवे ने वह दाना खाया, तो उसके एक आंख से अंजन (काजल) गिर गया और वह आंख बंद हो गई।
इस घटना के बाद से माना जाता है कि कौवे केवल एक ही आंख से देखते हैं। यह कथा रामायण की घटनाओं से नहीं, बल्कि लोककथाओं और लोक विश्वासों से संबंधित है, जो समय के साथ-साथ विकसित हुई हैं।
काकभुशुंडी जी की कथा का उल्लेख रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी किया है। इसके अनुसार, काकभुशुंडी जी भगवान राम के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अनेक जन्मों में राम कथा का श्रवण और संकीर्तन किया। उनकी भक्ति और भगवान राम के प्रति उनके प्रेम के कारण उन्हें कौवे के रूप में अमरत्व का वरदान प्राप्त हुआ।
एक बार काकभुशुंडी जी अपने गुरु के आदेश पर तपस्या कर रहे थे। तपस्या के दौरान उन्हें भगवान राम की लीलाओं का अनुभव हुआ और उन्होंने देखा कि भगवान राम ने बाल्यकाल में सीता माता को रावण से मुक्त कराने के लिए संघर्ष किया। इस दृश्य ने उनके मन में गहन भक्ति और प्रेम को जाग्रत किया।
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काकभुशुंडी जी की कथा में यह भी उल्लेख है कि वे त्रेता युग से लेकर कलियुग तक जीवित रहे और राम कथा का प्रचार करते रहे। उनका कौवे का रूप कालातीत है, जो यह दर्शाता है कि भक्ति और प्रेम भगवान के प्रति अमर हो सकते हैं।
यह कथा यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति और प्रेम के लिए कोई भी रूप या जाति मायने नहीं रखती। भगवान की भक्ति किसी भी रूप में की जा सकती है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। काकभुशुंडी जी का यह रूप हमें यह भी बताता है कि भक्ति में सच्चाई और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण होते हैं।
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