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रावण ने की थी कांवड़ की शुरूआत, भगवान शिव के लिए किया अखंड तप

Simran Singh • LAST UPDATED : July 10, 2024, 3:18 pm IST
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रावण ने की थी कांवड़ की शुरूआत, भगवान शिव के लिए किया अखंड तप

Kanwar Yatra

India News (इंडिया न्यूज), Kanwar Yatraसावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है। इस महीने में कांवड़ यात्रा भी ले जाए जाती है। जिसकी शुरुआत इस बार 22 जुलाई 2024 से हो रही है। इससे कांवड़ यात्रा को शिवरात्रि के दिन खत्म किया जाता है। सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू होकर 19 अगस्त में खत्म होगा। ऐसे में जानने वाली बात ये है की कांवड़ कैसे शुरु हुआ और इतनी संख्या में लोग क्यों इसके लिए जाने लगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि रावण वह पहले व्यक्ति था जो कावड़ की यात्रा किया करता था।

क्यों है सावन में कांवड़ की यात्रा खास Kanwar Yatra

बता दे की सावन महीने में कांवड़ की यात्रा को श्रद्धालु उत्तराखंड के हरिद्वार, गोमुख और गंगोत्री तक पहुंचाते हैं। वहां से पवित्र गंगाजल को अपने निवास स्थल पर लेकर आते है। और शिव मंदिर में उज्जैन चतुर्दशी के दिन शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है।

कैसे किया रावण ने शिव के लिए विष को दूर

प्राचीन ग्रंथो में देखा जाए तो कहा जाता है कि पहले कांवड़िया रावण था वेदों के अंदर कहा गया है की कांवड़ की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही शुरू हुई थी। तब जब मंथन में विष निकला तो संसार पूरी तरह हिल गया था। तब संसारको बचाने के लिए भगवान शिव ने हीं अपने गले में विष को धारण किया था। इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई उसको दूर करने का काम रावण द्वारा किया गया था।

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रावण ने की थी तपस्या

रावण के तप के कारण ही गंगाजल से महादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया गया था। जिससे शिव की ऊर्जा बड़ी और विष ऊर्जा से उन्हें मुक्ति मिली। इसके अलावा अंग्रेजों के काल की बात करें तो उन्होंने अपनी कई किताबों में 19वीं सदी से ही कांवड़ यात्रा का जिक्र करना शुरू किया है। कई पुराने चित्रों में भी यह देखा गया है कि कांवड़िया कांवड़ ले जाते हुए दिख रहे है। Kanwar Yatra

पहले नहीं होती थी इस तरह यात्रा 

वैसे तो अब कांवड़ियों को काफी धूमधाम से यात्रा निकालते हुए देखा जाता है लेकिन 1960 के दशक में ऐसा नहीं था। कुछ साधु श्रद्धालुओं के साथ धनी और मारवाड़ी सेठ नंगे पांव हरिद्वार या बिहार में सुल्तानगंज तक जाया करते थे। वहां से गंगाजल लेकर वह लौटते थे, जिससे शिव भगवान का अभिषेक किया जाता था। 80 के दशक के बाद धार्मिक आयोजनों में बढ़ोतरी के चलते यात्रा में भी बदलाव हुए।

भारत धर्म के मामले में एक विशाल देश है। वही एक आंकड़े की बात करें तो 2010 में और उसके बाद से ही 1.02 करोड़ कांवड़िया पवित्र गंगाजल को हरिद्वार से लेकर आते हैं और साल दर साल ये संख्या बढ़ती जा रही है। आमतौर पर कांवड़ियां उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उडीसा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड से हरिद्वार पहुंचने हैं।

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पहले नंगे पांव होती थी यात्रा

उसके साथ ही बता दे कि श्रद्धालु पहले के समय में बस की लकड़ी पर दो और टिकी हुई टोकरियों के साथ नंगे पांव ही यात्रा किया करते थे। इन टोकरियों में गंगाजल लेकर वह लौटते थे यात्रा के दौरान वह बांस की लकड़ी को कंधे पर रखकर चला करते थे लेकिन आज के समय में चीज बदल गई है। पहले जो लोग नंगे पांव पैदल यात्रा किया करते थे। अब उन्हें बाइक ट्रक और दूसरे साधनों की मदद से यात्रा करते देखा जाता है। Kanwar Yatra

कैसे उत्तराखंड से संबंध रखता है कांवड़ Kanwar Yatra

जिन लोगों को लगता है की कांवड़ की यात्रा उत्तराखंड से ही संबंध रखती है। ऐसा नहीं है आमतौर पर बिहार, झारखंड और बंगाल के करीबी लोग सुल्तानगंज तक जाकर गंगाजल लेकर कांवड़ यात्रा करते हैं। झारखंड में देवघर में मौजूद मंदिर में इसकी स्थापना की जाती है। उत्तराखंड की बात करें तो बाकी राज्य में उत्तराखंड मैं लोग पहुंचते हैं।

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