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Regret Makes you Weak
अरूण सहगल
जीवन एक ऐसा अनुभव है जो हमें मिला-जुला अहसास करवाता है… बहुत से लोगों के लिए यह उपलब्धियां और अवसर लेकर आता है तो कुछ ऐसे भी हैं जो इन अवसरों को खो देने का दुख या पछतावे को पूरी जिंदगी संभावल कर रखते हैं..वे इन नकारात्मक भावनाओं का बोझ ताउम्र ढोते ही रह जाते हैं। लेकिन इन सभी के बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ईश्वर को उनके दिए हुए हर लम्हे के लिए धन्यवाद देते हैं…. वे किसी प्रकार का कोई पछतावा नहीं करते और ना ही उन्हें कोई दुख सताता हैं। वे इस बात पर भरोसा करते हैं कि जो हुआ वह ईश्वर की ही मर्जी से हुआ। हालांकि बहुत से लोगों को लगता है कि पछतावा एक प्राकृतिक भावना है…. वह व्यक्ति के भीतर मौलिक रूप से विद्यमान रहती है। लेकिन वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं इन्हें लगता है अतीत पर पछतावा ना करना… या वर्तमान की प्रतिकूल स्थिति का दुख ना मनाना भी उतना ही मौलिक है।
दरअसल पछतावा करना हमें मानसिक और शारीरिक ऊर्जा विहीन बना देता है। पछतावा और चिंता के बीच एकमात्र अंतर यही है पछतावा अतीत को लेकर किया जाता है अर चिंता हमें आने वाले समय की सताती है। आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य में बाअ करें तो पछतावा वो क्रिया है जो हमारी परेशानी या दुख को जाहिर करती है। हमें यह बात समझनी चाहिए कि व्यक्ति हर स्थिति में अपना बेस्ट देने की कोशिश करता है… वह हर हालात को अपनी ओर से गंभीरता से लेने की भी कोशिश करता है। हालांकि कभी कभारा हालात ऐसे भी आते हैं जिनका अंदाजा हमें कभी भी पहले नहीं लग पाता। पछतावा करना हमारा मौलिक स्वभाव नहीं है… इसे हमने खुद ही अपने लिए गठित किया है।
पछतावा… पश्चाताप करने से पूरी तरह भिन्न है… पश्चाताप वह भावना है जो व्यक्ति को अपने द्वारा किए गए किसी बुरे कार्य की वजह से महसूस होती है। अध्यात्मिक जगत में यह माना जाता है कि जो भी होता है वह आपके भले के लिए ही होता है…. हमें केवल अपनी गलतियों को सुधारकर आगे बढ़ना चाहिए… हमें अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए… लेकिन स्वयं को बुरा सोचना, अपने लिए गलत भावना रखना सही नहीं है। हमें पछतावे से रहित जीवन व्यतीत करना चाहिए… एक खुशहाल जीवन जीना चाहिए।
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