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बरसो पहले जो खो गया था स्वर्ग का रास्ता, अब आया सामने…क्या पांडवों की तरह अब कलियुग के इंसान भी पा सकेंगे इस रस्ते जाकर मोक्ष

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 30, 2024, 4:00 pm IST
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बरसो पहले जो खो गया था स्वर्ग का रास्ता, अब आया सामने…क्या पांडवों की तरह अब कलियुग के इंसान भी पा सकेंगे इस रस्ते जाकर मोक्ष

Facts About Saraswati River: बरसो पहले जो खो गया था स्वर्ग का रास्ता अब आया सामने

India News (इंडिया न्यूज), Facts About Saraswati River: आपने सरस्वती नदी और उससे जुड़ी मान्यताओं, कथाओं और शोधों के बारे में बहुत विस्तार से लिखा है। सच में, यह एक अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण विषय है, जो न केवल भारतीय संस्कृति और इतिहास, बल्कि भूगोल और विज्ञान के संदर्भ में भी गहरा महत्व रखता है।

सरस्वती नदी का ऐतिहासिक महत्व

सरस्वती नदी का उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में अत्यधिक महत्वपूर्ण रूप से किया गया है। यह नदी न केवल एक भौगोलिक अस्तित्व के रूप में जानी जाती थी, बल्कि इसे एक देवी के रूप में भी पूजा जाता था। सरस्वती को ज्ञान, वाणी, और संगीत की देवी के रूप में पूजा गया। ऋग्वेद में सरस्वती को “नदीतमा” (नदियों में सर्वश्रेष्ठ) कहा गया है और इसे एक दिव्य शक्ति के रूप में दर्शाया गया।

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विज्ञान और भूगोल का दृष्टिकोण

हालांकि आज सरस्वती नदी का भौतिक अस्तित्व कहीं नहीं दिखता, वैज्ञानिक शोध और भूगोलविदों का मानना है कि प्राचीन काल में यह नदी वर्तमान पाकिस्तान, उत्तर भारत और पश्चिमी भारत में फैली हुई थी। कुछ मान्यता यह भी है कि यह नदी हिमालय से निकलकर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब होते हुए सिंधु (इंडस) नदी में मिल जाती थी। लेकिन यह नदी अब पूरी तरह से लुप्त हो चुकी है, और इसकी अधिकांश जलधारा भूमिगत हो चुकी है, जो कि कहीं न कहीं भूगर्भीय परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन, और मानव गतिविधियों के कारण हुआ।

वर्तमान में सरस्वती नदी का पानी

जैसलमेर के मोहनगढ़ में जो वीडियो वायरल हो रहा है, उसमें पानी का प्रवाह जमीन से बाहर आ रहा है। हालांकि कुछ लोग इसे सरस्वती नदी का जल मान रहे हैं, परंतु वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है कि यह जल सरस्वती नदी का ही है। यह संभव है कि यह कोई भूमिगत जल स्रोत हो जो हाल में पुनः उफान पर आया हो, या फिर यह किसी अन्य नदी या जलधारा का हिस्सा हो।

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सरस्वती नदी और महाकुंभ

प्रयागराज में त्रिवेणी संगम की मान्यता भी सरस्वती नदी से जुड़ी हुई है। महाकुंभ के अवसर पर इस संगम पर लाखों लोग श्रद्धा के साथ स्नान करने आते हैं। जबकि आज भी मान्यता है कि सरस्वती नदी का जल भूमिगत होकर गंगा और यमुना के साथ मिलकर त्रिवेणी संगम बनाता है, इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

सरस्वती का लुप्त होना और श्राप की कथा

सरस्वती नदी के लुप्त होने के पीछे जो पौराणिक कथा प्रचलित है, वह ऋषि दुर्वासा और देवी सरस्वती से जुड़ी हुई है। इस कथा में यह कहा गया है कि श्राप के कारण सरस्वती नदी भूमिगत हो गई। इस कथा को महाभारत और अन्य पुराणों में भी उल्लिखित किया गया है, जहां इसे एक दैवीय घटना के रूप में देखा गया है।

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आधुनिक शोध और खोजें

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सरस्वती नदी की खोज को लेकर कई शोध किए जा चुके हैं, जिनमें उपग्रह चित्रण, भूगर्भीय अध्ययन, और पुरातात्विक खोजों के जरिए इसके अस्तित्व के संकेत मिले हैं। उदाहरण स्वरूप, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में कुछ स्थानों पर भूगर्भीय जलधाराओं और सूक्ष्म जल स्रोतों के मिलन के संकेत मिले हैं, जो यह संकेत देते हैं कि कभी यहां एक बड़ी नदी बहती थी।

सरस्वती नदी के अस्तित्व और उसकी पूजा का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक है, और उसका प्रभाव भारतीय सभ्यता पर गहरा पड़ा है। यह नदी केवल जल का प्रवाह नहीं, बल्कि ज्ञान, वाणी और संस्कृति की देवी के रूप में भी पूजा जाती है। भले ही इसका भौगोलिक अस्तित्व आज न हो, लेकिन भारतीय संस्कृति में इसका स्थान कभी खत्म नहीं होगा। इसके लुप्त होने के कारणों पर अभी भी बहस जारी है, और वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से इसके अध्ययन और विश्लेषण की आवश्यकता है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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