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India News (इंडिया न्यूज), Shah Jahan wife Mumtaz Mahal: ताजमहल को शाहजहाँ और मुमताज महल के प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ताजमहल न केवल अपनी शानदार खूबसूरती के लिए दुनिया के अजूबों में से एक है, बल्कि इसके पीछे शाहजहाँ और मुमताज महल की गहरी प्रेम कहानी भी छिपी है, जो लोगों को आकर्षित करती है। ताजमहल की एक अनसुनी कहानी यह है कि मुमताज महल को पहले ताजमहल में नहीं, बल्कि उससे पहले तीन बार अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया था। यह अनसुनी कहानी ताजमहल से जुड़ी कई कहानियों में से एक है, जो इस स्मारक को और भी खास बनाती है।
मुमताज महल का असली नाम अर्जुमंद बानो बेगम था। 17 जून 1631 को बुरहानपुर में उनकी मृत्यु हो गई थी। दक्षिण भारत में शाहजहाँ के सैन्य अभियान के दौरान मुमताज की मृत्यु अपनी 14वीं संतान गौहर आरा बेगम को जन्म देते समय हो गई थी। इस घटना से दुखी होकर शाहजहाँ ने मुमताज की याद में एक भव्य मकबरा बनवाने का फैसला किया। मुमताज महल की मृत्यु बुरहानपुर में हुई, इसलिए उन्हें बुरहानपुर में ही ताप्ती नदी के किनारे एक बगीचे के अस्थायी कब्र में दफना दिया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय ताजमहल का निर्माण शुरू नहीं हुआ था।
शाहजहाँ चाहते थे कि मुमताज महल को ताजमहल में दफनाया जाए। इसलिए कुछ महीनों के बाद मुमताज के शव को बुरहानपुर से आगरा लाया गया। यहाँ उन्हे रौजा-ए-मुनव्वरा नामक एक अन्य अस्थायी मकबरे में रखा गया, क्योंकि ताजमहल का निर्माण अभी भी पूरा नहीं हुआ था। शाहजहाँ मुमताज से किया गया अपना वादा पूरा करना चाहते थे। इसलिए वह चाहते थे कि मुमताज को यमुना नदी के किनारे बने मकबरे में दफनाया जाए और यह उनके प्यार का प्रतीक बन जाए।
ताजमहल का निर्माण 1633 में रौज़ा-ए-मुनव्वरा मकबरे के स्थान पर पूरा हुआ था। फिर मुमताज महल को तीसरी बार ताजमहल के अंदर उसके अंतिम विश्राम स्थल पर दफनाया गया। यही वो मकबरा है जिसे देखने के लिए आज दुनिया भर से लोग आते हैं। मुमताज महल का ये आखिरी दफन शाहजहाँ की गहरी मोहब्बत का सबूत है। यही वजह है कि आज इसे मोहब्बत की अमर निशानी के तौर पर जाना जाता है।
शाहजहां के दरबारी इतिहासकार इनायत खान की किताब शाहजहांनामा से पता चलता है कि अपनी मौत से पहले मुमताज महल ने शाहजहां को एक सपने के बारे में बताया था, जिसमें उसने एक खूबसूरत महल और बगीचा देखा था। मुमताज ने शाहजहां से गुजारिश की थी कि उसे भी महल जैसे ही मकबरे में दफना दिया जाए। मुमताज की मौत के बाद शाहजहां ताजमहल बनने तक इस वादे को पूरा करने के लिए बेचैन थे। उन्होंने ताजमहल के लिए जानबूझकर यमुना के किनारे की जमीन चुनी, ताकि मकबरे के आसपास के बगीचों को पानी मिल सके। यही वजह थी कि शाहजहां ने मुमताज महल को तीन बार अलग-अलग जगहों पर दफनाया।
शाहजहाँ और मुमताज महल की प्रेम कहानी ताजमहल की हर ईंट में समाई हुई है। मुमताज के प्रति शाहजहाँ के अगाध प्रेम ने दुनिया के सबसे खूबसूरत और आलीशान मकबरे को जन्म दिया। ताजमहल सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक सच्चे और गहरे प्रेम का प्रतीक है। मुमताज को तीन बार दफ़नाने की यह कहानी इस प्रतीक को और भी भावुक और ऐतिहासिक बनाती है। यह अनसुनी कहानी ताजमहल के इतिहास को और भी रोचक और अनोखा बनाती है। जहाँ एक ओर ताजमहल की संरचना पूरी दुनिया में मशहूर है, वहीं दूसरी ओर मुमताज महल को दफ़नाने की यह कहानी शाहजहाँ और मुमताज के अमर प्रेम की गवाही देती है।
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