Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है और उनका ये रूप तपस्या, संयम और ज्ञान का प्रतीक होता है. मां ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर की अर्धांगिनी थी. उन्होंने घोर तपस्या करके शिव को पति रूप में प्राप्त किया. मां ब्रह्मचारिणी के हाथ में जपमाला और कमंडलु होता है, जो ध्यान और साधना का प्रतीक है. कहा जाता है जो भी व्यक्ति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा पूरे दिल और भाव से करता है और उनकी कृपा आप पर हो जाए, तो उस व्यक्ति का असंभव कार्य भी संभव हो जाता हैं.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के नियम
वहीं शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन यानी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दिन अगर कोई जातक ये तिन बड़ी गलती हो जाए, तो उसका वर्षों का तप, पूजा-पाठ और साधना सब व्यर्थ हो सकता है. आइए जानते हैं कि वो कौन सी 3 बाते है, जिनका कल यानी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दिन ध्यान रखना बेहद जरूरी है.
1. भोजन और ब्रह्मचर्य का उल्लंघन
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दिन यदी कोई जतक व्रती असंयमित भोजन करता है, मांस-मद्य का सेवन करता है और ब्रह्मचर्य के नियम का पालन नहीं करता है, तो सका व्रत निष्फल हो जाता है. पद्म पुराण में लिखा है कि “मद्यं मांसं न सेवेत व्रतानां ब्रह्मचारिणि”,इसका मतलब है व्रत के दौरान मद्य और मांस का सेवन व्रत को नष्ट कर देता है. आधुनिक दृष्टि के अनुसार बात करें तो व्रत के दौरान सात्त्विक भोजन मन और शरीर को तप के योग्य बनाता है और उसे शांत रखता है, जबकि तामसिक भोजन ऊर्जा को बढ़ाने का काम करता है, जिसकी वजह से आपके अंदर गलत घयाल आ सकते हैं.
2. अहंकार और क्रोध का वशीभूत होना
नवरात्रि के दूसरे दिन यानी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दिन कोई व्यक्ति या महिला पूजा के दौरान क्रोधित हो जाए, या कोई अहंकार में आकर किसी को गलत बोलदे, तो उसका व्रत वहीं नष्ट हो जाता है. शास्त्रों के अनुसार “अहंकारः परं दुष्टं क्रोधो वा नाशकः तपः” इसका मतलब है अहंकार और क्रोध तपस्या को तुरंत नष्ट कर देते हैं. वही आधुनिक दृष्टि के अनुसार मनोविज्ञान भी कहता है कि पूजा के समय गुस्सा आना मन की शांति को भंग करता है.
3. मंत्र-जप में अशुद्धि या भूल
इसके अलावा नवरात्रि के दूसरे दिन यानी मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के दौरान यदी कोई जातक मंत्र-जप करते समय अशुद्ध उच्चारण करे या अधूरा जप छोड़े, तो मां ब्रह्मचारिणी की कृपा नहीं मिलती और पूजा वहीं नष्ट हो जाती है. आधुनिक दृष्टि के अनुसार मंत्र का उच्चारण सही स्वर और लय में होना चाहिए, अगर ऐसा ना हो तो उसकी तरंगें मन-मस्तिष्क पर असर डालती हैं.
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