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किसकी एक गलती से दो भागों में बट गए मुसलमान! आज भी जानी दुश्मनी

Reepu kumari • LAST UPDATED : September 8, 2024, 12:02 pm IST

Shia and Sunni Muslims fight

India News (इंडिया न्यूज़), Shia and Sunni Muslims fight: हमारे देश का संविधान सभी धर्मों का सम्मान करना सिखाता है। लेकिन कई कारणों से आज भी सभी धर्मों के बीच एक मोटी ना दिखने वाली लकीर खींच दी गई है। जिसकी वजह से हम सभी एक दूसरे के धर्म के अभी भी पूरी तरह से अंजान है। कई ऐसी बातें हैं जिससे अब भी हम सब बेखबर है। थोड़ा बहुत इधर उधर से सुनकर एक दूसरे के बारे में गलत धारणा मन में बना लेते हैं। एक ऐसा ही विषय है मुसलमानें में शिया और सुन्नी का। मुसलमान भी दो भागों में बटे हैं शिया और सुन्नी। लेकिन ऐसा क्यों हुआ। जानकारी के अनुसार अगर वो एक गलती ना हुई होती तो आज सभी हंसी खुशी से साथ रह रहे होते।

शिया-सुन्नी विभाजन पैगंबर मुहम्मद के उत्तराधिकार को लेकर विवाद से उत्पन्न हुआ, जिसके कारण कई ऐतिहासिक घटनाएं और धार्मिक मतभेद हुए।

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच लड़ाई के कुछ मुख्य कारण

1. उत्तराधिकार संकट: 632 ई. में पैगंबर मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस बात पर विवाद हुआ कि मुस्लिम समुदाय के नेता के रूप में उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। शिया मुसलमानों का मानना ​​था कि पैगंबर के चचेरे भाई और दामाद अली ही सही उत्तराधिकारी थे, जबकि सुन्नी मुसलमानों ने पैगंबर के करीबी साथी अबू बकर का समर्थन किया।

2. कर्बला की लड़ाई (680 ई.): संघर्ष तब और बढ़ गया जब उमय्यद खलीफा यजीद ने अली के बेटे और शिया इमाम हुसैन से वफ़ादारी की मांग की। हुसैन के इनकार के कारण कर्बला की लड़ाई हुई, जिसमें वे और उनके अनुयायी मारे गए। इस घटना पर शिया मुसलमान गहरा शोक मनाते हैं।

3. सत्ता संघर्ष: उमय्यद और अब्बासिद खलीफा, जो मुख्य रूप से सुन्नी थे, ने शिया मुसलमानों को हाशिए पर धकेल दिया और उन्हें सताया, जिससे तनाव और बढ़ गया।

4. धार्मिक मतभेद: समय के साथ, शिया और सुन्नी मुसलमानों ने इस्लामी धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र और प्रथाओं की अलग-अलग व्याख्याएँ विकसित कीं, जैसे कि इमामत (शिया) की अवधारणा और खलीफा (सुन्नी) की भूमिका।

5. राजनीतिक और सांप्रदायिक तनाव: ऐतिहासिक घटनाएँ, जैसे कि 16वीं शताब्दी में सफ़वीद साम्राज्य का शिया इस्लाम में धर्मांतरण और 1979 में ईरानी क्रांति, ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच आधुनिक समय के तनाव में योगदान दिया।

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6. क्षेत्रीय और सांस्कृतिक कारक: स्थानीय और सांस्कृतिक मतभेद, जैसे कि ईरान और इराक में शिया मुसलमानों का प्रभुत्व, तनाव को बनाए रखने में योगदान देता है।

7. उग्रवाद और सांप्रदायिकता: ISIS और अल-कायदा जैसे उग्रवादी समूहों के उदय ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव और हिंसा को बढ़ा दिया है।

यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि शिया और सुन्नी मुसलमानों का बहुमत हिंसक संघर्षों में शामिल नहीं है और शांतिपूर्ण तरीके से सह-अस्तित्व में है। हालाँकि, इन ऐतिहासिक और धार्मिक कारकों ने कुछ क्षेत्रों में चल रहे तनाव और संघर्षों में योगदान दिया है।

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