संबंधित खबरें
क्यों दुर्योधन की जांघ तोड़कर ही भीम ने उतारा था उसे मौत के घाट, पैर में छिपा था ऐसा कौन-सा जीवन का राज?
जो लोग छिपा लेते हैं दूसरों से ये 7 राज…माँ लक्ष्मी का रहता है उस घर में सदैव वास, खुशियों से भरी रहती है झोली
इन 4 राशियों की लड़कियों का प्यार पाना होता है जंग जीतने जैसा, स्वर्ग सा बना देती हैं जीवन
देवो के देव महादेव के माता-पिता है कौन? शिव परिवार में क्यों नहीं दिया जाता पूजा स्थान
नए साल पर गलती से भी न करें ये काम, अगर कर दिया ऐसा तो मां लक्ष्मी देंगी ऐसी सजा जो सोच भी नहीं पाएंगे आप
दान में जो दे दिए इतने मुट्ठी चावल तो दुनिया की कोई ताकत नहीं जो रोक दे आपके अच्छे दिन, जानें सही तरीका और नियम?
Shradh 2021
खास योग में करें पितरों का तर्पण मिलेगी शांति
100 साल बाद श्राद्ध पक्ष में महासंयोग
सौ साल बाद 7 योगों ने बनाया श्राद्ध पक्ष को खास
इंडिया न्यूज, कैथल :
नरेश भारद्वाज
इस बार Shradh पक्ष में 5 बार स्वार्थ सिद्धि योग रहेगा और समापन भी स्वार्थ सिद्धि योग में ही होगा। इसके अलावा एक अमृत गुरु पुष्य योग तथा गजछाया योग का महासंयोग भी रहेगा। श्राद्ध पक्ष में गुरु तारे का उदित रहना भी खास रहेगा। इस बार श्राद्ध पक्ष में कोई तिथि खंडित नहीं है और ना ही किसी तिथि का क्षय है। इसलिए यह सभी योग श्राद्ध पक्ष को अति खास बना रहे हैं।
इस बार मंगलवार से Shradh पक्ष शुरू हो रहे हैं। इस बार श्राद्ध पक्ष में सौ साल बाद ऐसे योग बन रहे हैं। जिसके दौरान पितरों को अन्न, जल प्रदान करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आएगी। सात संयोग होना Shradh पक्ष को खास बना रहा है। मंगलवार 21 सितंबर को अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा पर दिव्य संयोगों व ग्रहों की श्रेष्ठ स्थिति में महालय श्राद्ध पक्ष का आरंभ होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष की शुरूआत सर्वार्थसिद्धि योग में हो रही है। श्राद्ध पक्ष का समापन भी सर्वार्थसिद्धि योग में आ रही सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या पर होगा। श्राद्ध के इन 16 दिनों में पांच सर्वार्थसिद्धि, एक अमृत गुरु पुष्य योग तथा गजछाया योग का महासंयोग रहेगा। ज्योतिषियों के अनुसार इस दुर्लभ पक्षकाल में पितरों के निमित्त श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर सुख, शांति व वंशवृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित रामराज कौशिक व पंडित दीप लाल जयपुरी अंबाला के अनुसार श्राद्ध के लिए भाद्रपदा मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण अमावस्या तक 16 दिवसीय पक्षकाल माना जाता है। श्रद्धालु दिवंगत हुए अपने पितरों की तिथि अनुसार तीर्थ पर श्राद्ध करने आते हैं। धर्मधानी उज्जैन पितृकर्म के लिए विशेष मानी गई है। यहां पितरों को श्राद्ध करने से गया के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। स्कंदपुराण के अवंतिखंड में उज्जैन में श्राद्ध करने के लिए सिद्धवट, रामघाट व गयाकोठा तीर्थ का उल्लेख मिलता है। 20 सितंबर को भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि रहेगी। अगले दिन 21 सितंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग की साक्षी में श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो जाएगा। 6 अक्टूबर को सर्वार्थ सिद्धि व गजछाया योग के महासंयोग में सर्वपितृ अमावस्या पर पक्ष काल का समापन होगा।
Shradh पक्ष के इन 16 दिनों में किसी भी तिथि का क्षय नहीं है। धर्मशास्त्रीय मान्यता के अनुसार महालय श्राद्ध पक्ष में गुरु के तारे का उदित रहना तथा तिथि का खंडित नहीं होना अतिश्रेष्ठ माना जाता है। इस बार सोलह दिवसीय पर्वकाल में यह विशिष्ट स्थिति भी बन रही है। श्राद्ध पक्ष में गुरु का तारा भी उदित अवस्था में रहेगा तथा Shradh पूरे सोलह दिन के रहेंगे। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। जिस व्यक्ति की जिस तिथि पर मृत्यु हुई है, उसी तिथि पर उस व्यक्ति का श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति के मृत्यु की तिथि के बारे में जानकारी नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति का श्राद्ध अमावस्या तिथि पर किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
1.’त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्र: कुतपस्तिला:।
वर्ज्याणि प्राह राजेन्द्र क्रोधोध्वगमनं त्वरा।’
– यानि दौहित्र पुत्री का पुत्र, कुतप मध्या- का समय और तिल ये तीन श्राद्ध में अत्यंत पवित्र हैं। जबकि क्रोध, अध्वगमन श्राद्ध करके एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना व श्राद्ध करने में शीघ्रता ये तीन वर्जित हैं।
2. ‘दन्तधावनताम्बूले तैलाभ्यडमभोजनम।
रत्यौषधं परान्नं च श्राद्धकृत्सप्त वर्जयेत्?।’
– यानि दातौन करना, पान खाना, तेल लगाना, भोजन करना, स्त्री प्रसंग, औषध सेवन और दूसरे का अन्न ये सात श्राद्धकर्ता के लिए वर्जित हैं।
3. ‘सर्वलक्षणसंयुक्तैर्विद्याशीलगुणान्वितै:।
पुरुषत्रयविख्यातै: सर्वं श्राद्धं प्रकल्पयेत्?।’
– यानि समस्त लक्षणों से संपन्न विद्या, शील व सद्गुणों से संपन्न और तीन पुरुषों से विख्यात सद्गुणों से श्राद्ध संपन्न करें।
4. ‘यदन्नं पुरुषोऽश्नाति तदन्नं पितृदेवता:।
अपकेनाथ पकेन तृप्तिं कुर्यात्सुत: पितु:।’
– यानि मनुष्य जिस अन्न को स्वयं भोजन करता है, उसी अन्न से पितृ और देवता भी तृप्त होते हैं। पकाया हुआ या बिना पकाया हुआ अन्न प्रदान करके पुत्र अपने पितृ को तृप्त करें।
कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में प्रयुक्त नहीं होते- मसूर, राजमा, कोदो, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्र जल से बना नमक। भैंस, हिरणी, ऊंटनी, भेड़ और एक खुर वाले पशु का दूध भी वर्जित है, पर भैंस का घी वर्जित नहीं है। श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं। श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है। Shradh करने वाले व्यक्ति को अपने नाखून नहीं काटने चाहिए और ना ही दाढ़ी का बाल बनाने चाहिएं। इस्त्री संसर्ग से दूर रहे और मांस मदिरा का त्याग करें। Shradh में कोई शुभ कार्य ना करें।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.