रुक्मिणी और श्री कृष्ण का विवाह
रुक्मिणी, विदर्भ के राजा भीष्मक की सुंदर और चतुर पुत्री थीं। उनका विवाह श्री कृष्ण से तय हो गया था, लेकिन यह विवाह रुक्मिणी की इच्छा के विपरीत था। वह भगवान श्री कृष्ण को अपना जीवनसाथी मानती थीं और उन्हें ही अपना जीवनसाथी मानने की प्रार्थना करती थीं।
रुक्मिणी की इच्छा पूरी करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अद्भुत योजना बनाई। उन्होंने रुक्मिणी को हरण कर लिया और उन्हें विदर्भ से अपने साथ द्वारका ले आए। इस प्रकार, रुक्मिणी और श्री कृष्ण का विवाह हुआ, जो एक महान प्रेमकहानी के रूप में प्रसिद्ध है।
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श्री कृष्ण और रुक्मिणी के संतान
भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के दस पुत्र हुए, जो विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित हैं। लेकिन उनके एकमात्र बेटी, चारुमति की कथा भी काफी दिलचस्प और महत्वपूर्ण है।
चारुमति का जन्म और जीवन
भागवत पुराण के अनुसार, चारुमति भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी की पुत्री थीं। चारुमति का जन्म दिव्य गुणों और सौंदर्य के साथ हुआ था। उन्होंने अपने माता-पिता की तरह ही गुण और आचरण में उत्कृष्टता प्राप्त की। उनका जीवन एक आदर्श और प्रेरणादायक जीवन था, जो उनके परिवार के लिए गर्व का कारण था।
चारुमति का विवाह
चारुमति का विवाह बाली से हुआ था। बाली, जो कि एक प्रमुख राक्षस राजा थे और बहुत शक्तिशाली माने जाते थे, ने चारुमति को अपनी पत्नी बनाया। इस विवाह के माध्यम से श्री कृष्ण और रुक्मिणी के परिवार का संबंध एक महत्वपूर्ण राक्षस परिवार के साथ जुड़ा। यह विवाह उनके राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह दो महत्वपूर्ण और शक्तिशाली परिवारों के बीच एक महत्वपूर्ण गठबंधन का प्रतीक था।
चारुमति की विशेषता और महत्व
चारुमति के जीवन की कथा न केवल भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के परिवार की एक महत्वपूर्ण कड़ी है, बल्कि यह एक महत्वपूर्ण उदाहरण भी है कि कैसे धार्मिक और पौराणिक कथाएँ पारिवारिक और राजनीतिक संबंधों को दर्शाती हैं। चारुमति की जीवन कथा में हमें प्रेम, भक्ति, और परिवार की महत्ता की गहरी समझ मिलती है।
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