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हाथों से दीपक जला देने वाले वो सियाराम बाबा, केतली में कभी खत्म नहीं होने देतेथे चाय, लेकिन उनकी इस एक बात से आज भी है आप अनजान?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 12, 2024, 10:18 am IST
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हाथों से दीपक जला देने वाले वो सियाराम बाबा, केतली में कभी खत्म नहीं होने देतेथे चाय, लेकिन उनकी इस एक बात से आज भी है आप अनजान?

Siyaram Baba: सियाराम बाबा का जीवन भक्तों के लिए एक आदर्श था।

India News (इंडिया न्यूज), Siyaram Baba: मध्य प्रदेश के खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में स्थित भट्टयान आश्रम के संत सियाराम बाबा का हाल ही में निधन हो गया। उनका निधन मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के पावन दिन हुआ, जो उनके जीवन और साधना के साथ गहरे जुड़ा हुआ है। सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर सियाराम बाबा ने देह त्यागी और भगवान में विलीन हो गए। उनकी आत्मा के इस परम यात्रा पर लाखों भक्त शोक में हैं, जिन्होंने बाबा के स्वास्थ्य के लिए पिछले कुछ दिनों से जाप और भजन किया था।

100 से अधिक वर्ष की उम्र और 12 साल का मौन व्रत

सियाराम बाबा की उम्र 100 साल से भी अधिक मानी जाती है। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू था उनका 12 वर्षों तक मौन रहना। यह मौन व्रत उनकी गहरी साधना का प्रतीक था। वे नर्मदा नदी के किनारे स्थित अपने आश्रम में तपस्या करते थे और कभी भी किसी से ज्यादा दान स्वीकार नहीं करते थे। उनके पास आने वाले भक्तों से वे केवल दस रुपये का नोट ही लेते थे, और वह धन आश्रम के कार्यों में लगाते थे। उनका जीवन पूरी तरह से सरल और तपस्वी था, जिसमें उन्होंने भव्य साधना और सेवा को प्राथमिकता दी।

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चाय और दीपक के चमत्कारी किस्से

सियाराम बाबा का चाय और केतली का किस्सा बहुत प्रसिद्ध है। भक्तों का कहना है कि जब भी बाबा चाय बनाते थे, उनकी केतली कभी खाली नहीं होती थी। चाय का कभी अंत नहीं होता था, जो उनके चमत्कारी व्यक्तित्व को दर्शाता था। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें बाबा बिना माचिस के दीपक जलाते हुए दिखाई दिए थे। यह चमत्कारी घटना उनके अद्भुत साधना और आंतरिक शक्ति को दर्शाती है।

तपस्या, साधना और लंगोट में जीवन

सियाराम बाबा का जीवन तप और साधना में बसा हुआ था। चाहे कड़ी ठंड हो या झुलसा देने वाली गर्मी, बाबा हमेशा एक लंगोट में ही रहते थे। कहा जाता है कि उन्होंने 12 साल तक खड़े होकर तपस्या की और अपनी योग साधना के दम पर खुद को हर मौसम के अनुकूल ढाल लिया था। हर सुबह नर्मदा नदी में जाकर पूजा करना और दिनभर रामायण की चौपाई का पाठ करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। उनके भक्तों का मानना था कि बाबा ने अपनी साधना से जीवन की कठिनाइयों को पार किया और हर परिस्थिति में अपने आंतरिक संतुलन को बनाए रखा।

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सियाराम बाबा की शिष्य परंपरा

सियाराम बाबा का जीवन भक्तों के लिए एक आदर्श था। उनके आश्रम में हर माह हजारों लोग आते हैं, जो उनकी शिक्षाओं और चमत्कारों को महसूस करते हैं। उनके निधन के बाद भी उनके मार्गदर्शन की छांव में लाखों भक्त अपने जीवन को सरल और संतुलित बनाने के लिए प्रेरित होते रहेंगे।

उनकी मृत्यु के बावजूद, उनकी शिक्षाएं, साधना और चमत्कारी घटनाएँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित रहेंगी। सियाराम बाबा के जाने से न केवल उनके भक्तों को शोक का सामना करना पड़ा है, बल्कि उनके जीवन के अद्भुत पहलुओं से हम सभी को जीवन की गहरी समझ और आध्यात्मिकता की ओर प्रेरणा मिलती है।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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