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India News (इंडिया न्यूज), Suryaputra Karn Story:कर्ण के जन्म की पूरी कहानी महाभारत के आदि पर्व में विस्तार से मिलती है। लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि कर्ण को सूर्यपुत्र कैसे कहा जाने लगा। कर्ण को सूर्यपुत्र कहे जाने के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है। महाभारत के कर्ण न केवल वीर और उदार व्यक्ति थे, बल्कि कृतज्ञता, मित्रता, सद्भाव, त्याग और तपस्या की मिसाल भी थे। वे ज्ञानी, दूरदर्शी, मेहनती और राजनीतिज्ञ भी थे और धर्म के सिद्धांतों को समझते थे। वे दृढ़ निश्चयी और अजेय भी थे। दरअसल, कर्ण का व्यक्तित्व रहस्यमय है। कर्ण कुंती के सबसे बड़े पुत्र थे और कुंती के अन्य 3 पुत्र उनके भाई थे। कुंती के कुल चार पुत्र थे। दो पुत्र नकुल और सहदेव माद्री के पुत्र थे।
कर्ण को सूत पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। और साथ हीं कर्ण को दानवीर कर्ण भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि शूरसेन नाम का यदुवंशी राजा था। उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम प्रथा था।शूरसेन की बुआ का बेटा कुंती भोज था। उसके कोई संतान नहीं थी। तब राजा शूरसेन ने अपनी बेटी प्रथा को कुंती भोज को गोद दे दिया। कुंती भोज ने प्रथा का नाम कुंती रखा और बाद में प्रथा कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। कुंती बचपन से ही ऋषि-मुनियों की सेवा करती थी।
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पंडित इंद्रमणि घनस्याल के मुताबीक ऋषि दुर्वासा ने कुंती के सेवा भाव से प्रसन्न होकर उसे एक मंत्र दिया और कहा कि इस मंत्र से तुम किसी भी देवता का आह्वान कर सकोगी। जो भी देवता इस मंत्र से तुम्हारे सामने प्रकट होगा। उस देवता से तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी। तब कुंती को आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे हो सकता है। वह बहुत हैरान हुई और एकांत में छिपकर उसी मंत्र का जाप करने लगी और सूर्य देव का आह्वान करने लगी।
तभी सूर्य देव कुंती के सामने प्रकट हुए और उनके तेज से कुंती गर्भवती हुई और एक बालक का जन्म हुआ। उस बालक का नाम कर्ण रखा गया। कर्ण जन्म से ही चमकीले कुंडल और कवच पहने हुए थे। कुंती कुंवारी थी इसलिए समाज में कलंक और बदनामी के डर से उसने कर्ण को एक टोकरी में छिपाकर नदी में बहा दिया। इस प्रकार सूर्य के तेज से पैदा होने के कारण कर्ण को सूर्यपुत्र कहा जाता है।
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