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रॉय ई. क्लीनवॉचर
हमारी परंपराएं कहती हैं कि जब भी किसी को कुछ देने का मौका आए, तो चूकना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे यह पता चलता है कि आप किस तरह के इंसान हैं और आपके दूसरों के साथ कैसे रिश्ते हैं। और जिस वक्त आप दे रहे हैं, उस वक्त माहौल कैसा है, और वस्तुत: सामने वाले की जरूरत क्या है। जब भी आप किसी भिखारी के पास से उसके फैले हाथों की उपेक्षा करते हुए निकल जाते हैं, तो आप अपने ही बारे में एक राय बना रहे होते हैं, या फिर यह जता रहे होते हैंं कि भिखारी के बारे में आपकी क्या सोच है। हम अपने ही नजरिए से भिखारी के लिए राय बना लेते हैं। हम में से बहुत कम लोग हैं, जो उसे कुछ नहीं देना चाहेंगे। चाहे सांत्वना के दो बोल ही सही, देंगे जरूर।
लेकिन मैं भिखारी को खाना देने की बजाय उसे मछली पकड़ना सिखाना ज्यादा बेहतर समझता हूं। मुझसे यदि पूछा जाय कि आप इन दो शख्स में से किसे पैसा देना पसंद करेंगे- उसे जो मछली पकड़ कर उस भिखारी को देगा, या उसे जो भिखारी को मछली पकड़ना सिखाएगा, तो मैं कहूंगा, उसे जो भिखारी को मछली पकड़ना सिखाएगा। हो सकता है, उस समय उस भिखारी को मछली पकड़ना सीखना रास नहीं आए यदि उसकी तत्काल आवश्यकता भूख शांत करने की है। इसलिए मछली पकड़ना सिखाने वाले को पैसा देना मेरे लिए उस वक्त सही नहीं होगा।
उस शख्स को देना सही होगा, जिसने मछली पकड़ कर उसे दी है क्योंकि उस वक्त भूखे इंसान की यह तत्काल आवश्यकता है। जरूरी नहीं कि भिखारी को पैसे देने से भूख का मुद्दा शांत हो जाए। क्योंकि हो सकता इन पैसों से वह ड्रज्स या कुछ और खरीदना चाहता हो। क्या आप किसी भिखारी पर भरोसा कर सकते हैं, जो झूठ बोलना सीख चुका है और पैसा लेने के लिए नई-नई कहानियां गढ़ता है? ऐसे में उस शख्स को पैसा देना बेहतर समाधान लगता है, जो उसके लिए मछली पकड़कर लाएगा। इस शख्स को पैसा देने के बाद भी भिखारी भूखा दिखे, तो सवाल उठना लाजिमी है कि जिस शख्स को हमने पैसा भिखारी के लिए मछली लाने के लिए दिया था, उसका क्या हुआ। या हमने जितने पैसे दिए, उससे वह भिखारी की पूरी तौर पर जरूरत पूरी कर रहा है या नहीं? क्या उस पर भरोसा किया जा सकता है कि जो पैसे उसे मछली पकड़ने के लिए दिए गए हैं, उसके बदले में वह भूखे इंसान को मछली देगा। इसलिए सहयोग के लिए पैसे उन्हीं हाथों में देना चाहिए, जो ईमानदारी से किसी का भला कर सके।
ऐसे में लगता है, उस शख्स को पैसा देना अधिक सही है, जो भिखारी को मछली पकड़ना सिखाए, ताकि उसे खाने के लिए फिर भीख नहीं मांगनी पड़े और अपनी जरूरतों को वह खुद पूरा करने में समर्थ हो सके। अक्सर सुनने में आता है कि जरूरतमंदों की मदद के नाम से चलने वाले संगठनों या व्यक्तियों को दिया गया पैसा उनकी खुद की जेब में चला जाता है और आपके डोनेशन का लाभ जरूरतमंदों को नहीं मिलता। इनमें से कोई भी व्यक्ति मुझे जिम्मेदार नहीं लगते। केवल एक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभा सकता है, और वह आप खुद हैं। यदि जब भी देने का अवसर आए, आप स्वयं दें।
देना आपका कर्तव्य बन जाता है, इसलिए नहीं कि किसी इंसान की जरूरत है, बल्कि इसलिए कि आपको किसी को कुछ देने का मौका मिल रहा है, किसी जरूरतमंद के लिए आपके मन में करुणा है और आप यही इसके माध्यम से यही व्यक्त कर रहे हैं। यह बात भी देने जितनी ही महत्वपूर्ण है कि जब भी दें पूरी भावना से दें। ऐसा न हो कि देकर आपको पश्चाताप होने लगे। इससे बेहतर तो यही होगा कि जब आपको लगे कि किसी को उस समय देना ठीक नहीं है, तो नहीं दें। देकर पश्चाताप करना सबसे खराब बात है। आप खुद ही नकार रहे हैं अपने आपको, और अपनी भावनाओं को। जब आप मन से देते हैं, तो आप खुद को दे रहे हैं, न कि किसी और को। यदि आप दिल से देते हैं और उस वक्त जब किसी को जरूरत है, तो देने का आपको अधिकतम लाभ मिलता है, देने मात्र से ही आपको तत्काल लाभ मिलता है। आपकी एक इमेज बनती है। जिसे दे रहे हैं, उसका आशीर्वाद मिलता है।
यदि आप किसी को अपने लिए दे रहे हैं, भीतर से उपजी करुणा से दे रहे हैं, बिना किसी अपेक्षा के दे रहे हैं, देना चाहते हैं इसलिए दे रहे हैं, तो आप कभी इस पर गौर नहीं करना चाहेंगे कि आपके दिए पैसों का क्या उपयोग हुआ। अब यह आपकी चिंता नहीं है कि सामने वाला शख्स उन पैसों का इस्तेमाल ड्रज्स, सिगरेट, एल्कोहल या कुछ और खरीदने के लिए कर रहा है। आपका देना यह बताता है कि उस वक्त जो आपने उसके लिए महसूस किया, वही किया। यह आपकी जिंदगी का गौरवपूर्ण लम्हा है। मैंने कुछ सालों पहले अपनी वेबसाइट बनाई थी, जिसे ओपरेट और मेंटेन करने में मेरे हजारों खर्च हो गए। बाद में मैंने इसमें डोनेट करने के इच्छुक लोगों के लिए एक लिंक जोड़ा। यह लिंक उनके लिए बतौर तोहफा था, जो मेरी साइट के उद्देश्य को समझ सकें। जिन्होंने इसके महत्व को समझा और कुछ महत्व का दान करना चाहते थे, यह लिंक एक तरह से उनके लिए सुनहरा मौका था। यह उनके लिए अपनी वेल्यू और रेस्पेक्ट को व्यक्त करने का माध्यम था। यह सबसे बड़ा तोहफा था, जो मैं अपनी साइट विजिट करने वालों को दे सकता था।
यदि कोई वेल्यू की कदर करता है, तो उसके बदले में उसे वेल्यू मिलती है, महत्व मिलता है, क्योंकि वे अपने महत्व के प्रति सजग हैं। यदि कोई उन्हें महत्व नहीं देता है, तो वे भी बदले में महत्व नहीं दे पाते हैं, क्योंकि उस क्षण वे खुद को वेल्यूलेस समझते हैं, महत्वपूर्ण नहीं समझते हैं। यदि आप खुद को वेल्यू नहीं दे सकते, महत्व नहीं दे सकते, तो आप किसी और को महत्व नहीं दे सकते। अपना महत्व, अपनी वेल्यू तभी अनुभव की जा सकती है, जब आप किसी को महत्व देते हैं। अगली बार आपको देने का मौका मिले, तो सबसे पहले अपने इंट्यूशन की सुनें और फिर तुरंत उसके अनुरूप काम करें। चाहें दें अथवा न दें। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि यदि आप नहीं दे रहे हैं, तो अपने भीतर होने वाले संवाद को सुनें। यह बताएगा कि आप अपनी आत्मा से कितने जुड़े हैं और कितने नहीं। कौन सबसे बड़ा तोहफा देता है, वो जो जरूरतमंद है या वो जो दान देना चाहता है? बेशक जो जरूरतमंद है? जब देने से पहले सोचना बंद कर देते हैं, तब आप अपने खुद के महत्व पर प्रश्नचिह्न लगा रहे होते हैं। यह न तो अच्छी बात है और न ही बुरी, यह केवल उस बात की पहचान है कि आप खुद को उस क्षण किस रूप में देखते हैं। आप किसी को कुछ देते हैं, क्योंकि देना आपके स्वभाव में है, तो आपको तत्काल रिवार्ड मिलेगा-आपकी पहचान होगी। यह सबसे बड़ा तोहफा होगा।
यह जिंदगी का तोहफा है। जिंदगी हमेशा खुद को इस रूप में पेश करती है कि मैं हूं। एक बार दे देने के बाद दिया हुआ आपके लिए बेमानी हो जाता है, वह आपका नहीं रहता, न ही कोई अपेक्षाएं। यदि अपेक्षाएं हैं, तो दान दान नहीं है- एडवांस में भुगतान बन जाता है, उसके बदले में कि बाद में सहयोग लेने वाले से आपकी कुछ उम्मीदें पूरी होंगी। इसलिए देने का अवसर कभी नहीं चूकें, क्योंकि देने का आपको तुरंत रिवार्ड मिलेगा। देकर आपको हमेशा संतोष होगा, आप अच्छा महसूस करेंगे। यही तो है देने का सुख!
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