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अंतिम संस्कार में नहीं जलता शरीर का ये अंग…लेकिन फिर कैसे मिल पाती होगी आत्मा को मुक्ति?

PUBLISHED BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : September 26, 2024, 3:19 pm IST
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अंतिम संस्कार में नहीं जलता शरीर का ये अंग…लेकिन फिर कैसे मिल पाती होगी आत्मा को मुक्ति?

Antim Sanskaar: शरीर के जलने के बाद भी दांत पूरी तरह से नहीं जलते। इसका मुख्य कारण दांतों में पाए जाने वाला कैल्शियम फॉस्फेट है।

India News (इंडिया न्यूज़), Antim Sanskaar: हिंदू धर्म में कुल 16 संस्कार होते हैं, जिनमें सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण संस्कार अंत्येष्टि संस्कार या दाह संस्कार है। इस संस्कार के दौरान मृतक के शरीर को अग्नि के हवाले किया जाता है। माना जाता है कि यह प्रक्रिया आत्मा की मुक्ति और जीवन के चक्र को पूर्ण करती है। हिंदू धर्म की मान्यता है कि मृतक के शरीर को अग्नि देने से उसकी आत्मा पवित्र होती है और मोक्ष की ओर अग्रसर होती है।

दाह संस्कार की प्रक्रिया:

दाह संस्कार के दौरान शव को जलने में आमतौर पर 2 से 3 घंटे का समय लगता है। इस अवधि में, शरीर के लगभग सभी अंग जल जाते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो, दाह संस्कार के समय लगभग 670°C से 810°C तक का तापमान होता है। इस तापमान पर मानव शरीर में क्या होता है, इसका एक क्रमिक वर्णन है:

  • 10 मिनट के अंदर: शरीर पिघलना शुरू कर देता है।
  • 20 मिनट के बाद: ललाट की हड्डी (माथे की हड्डी) टिश्यू से अलग होने लगती है, और कपाल की पतली दीवार में दरारें आनी शुरू हो जाती हैं।
  • 30 मिनट के बाद: संपूर्ण ऊपरी त्वचा नष्ट हो जाती है।
  • 40 मिनट के अंदर: आंतरिक अंग सिकुड़ जाते हैं, और शरीर जाल या स्पंज जैसी संरचना में परिवर्तित होने लगता है।
  • 50 मिनट के बाद: हाथ और पैर जल कर अलग हो जाते हैं, जिसके बाद धड़ बचता है।
  • 2-3 घंटे तक की इस प्रक्रिया में शरीर के लगभग सभी अंग जलकर राख हो जाते हैं। हालांकि, एक विशेष अंग है जो इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी पूरी तरह से नहीं जल पाता।

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कौन-सा अंग नहीं जलता है?

शरीर के जलने के बाद भी दांत पूरी तरह से नहीं जलते। इसका मुख्य कारण दांतों में पाए जाने वाला कैल्शियम फॉस्फेट है। कैल्शियम फॉस्फेट एक ऐसा तत्व है जो अत्यधिक तापमान पर भी पूरी तरह से नष्ट नहीं होता। हालांकि, दांतों के ऊतक (टिश्यू) जल जाते हैं, लेकिन उनकी हड्डी संरचना बची रहती है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हड्डियों को पूरी तरह से जलाने के लिए लगभग 1292°F (700°C से अधिक) तापमान की आवश्यकता होती है, फिर भी दांतों की पूरी संरचना आग में नष्ट नहीं होती।

दांतों का वैज्ञानिक विश्लेषण:

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, दांतों में उपस्थित कैल्शियम फॉस्फेट उन्हें अत्यधिक तापमान में भी सुरक्षित रखता है। अन्य हड्डियों की तुलना में दांतों की संरचना घनी होती है, इसलिए वे आग में पूरी तरह से नहीं जल पाते। दांतों का ऊतक जलने के बावजूद, उनकी मूल हड्डी संरचना बची रहती है।

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हड्डियों का प्रवाह:

दाह संस्कार की प्रक्रिया के बाद जो अवशेष बचते हैं, उन्हें हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार किसी पवित्र नदी, विशेषकर गंगा नदी, में प्रवाहित कर दिया जाता है। यह प्रवाह भी आत्मा की शुद्धि और मुक्ति के लिए किया जाता है।

निष्कर्ष:

हिंदू धर्म में दाह संस्कार एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र प्रक्रिया है, जो न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गहरी समझ और ध्यान की मांग करती है। शरीर के सभी अंगों के जलने के बाद भी दांतों का न जलना इस प्रक्रिया के वैज्ञानिक पक्ष को दर्शाता है, जो धार्मिक विश्वासों से जुड़ा हुआ है।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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