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three criteria of a successful life सफल जीवन की तीन कसौटियां

India News Editor • LAST UPDATED : September 21, 2021, 1:14 pm IST
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three criteria of a successful life सफल जीवन की तीन कसौटियां

आचार्य श्री महाप्रज्ञ

सब कुछ निर्भर है दृष्टिकोण पर। अगर दृष्टिकोण सही है तो आचार, व्यवहार, सब कुछ सही हो जाता है। अच्छा जीवन जीने के लिए यह पहली कसौटी है। दृष्टिकोण गलत है तो कुछ भी सही नहीं होता। सब गलत ही गलत होता है। शास्त्रों का एक सूक्त है -जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि। पहले दृष्टि पर विचार करो, फिर कुछ करने की सोचो। दृष्टि सही नहीं है तो न तुम किसी चीज को समझ सकते हो, न देख सकते हो, न जान सकते हो। दृष्टिकोण यथार्थग्राही होना चाहिए। हम सच्चाई को पकड़ सकें और उसे जान सकें।

सच्चाई के साथ युग बोध, युग का दृष्टिकोण, युगीन समस्याएं और युग का समाधान, इन सब को देख कर ही हमें कोई निर्णय करना चाहिए। इसी के आधार पर अपने दृष्टिकोण का निर्माण करना चाहिए। भगवान महावीर ने चरित्र को महत्व दिया। किंतु सबसे पहले महत्व दिया सम्यक दर्शन को। सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चरित्र- यह एक क्रम है। सम्यक दर्शन होगा तो ज्ञान भी सम्यक होगा। और फिर इसके फलस्वरूप चरित्र सम्यक होगा। सम्यक दर्शन नहीं है तो न ज्ञान सम्यक होगा, न चरित्र सम्यक होगा। अहिंसा को हम बहुत सीमित अर्थ में ले रहे हैं। नहीं मारा या मरते हुए जीव को बचा दिया तो इसे हम अहिंसा मान लेते हैं। अहिंसा को सही अर्थ में समझने की जरूरत है। मारना, बचाना आदि तो अहिंसा का स्थूल रूप है।

सूक्ष्म रूप में अहिंसा का पालन करो, अपने व्यवहार को संयमित करो, अपनी भावना में संयम और त्याग को स्थान दो। इससे अहिंसा प्रतिफलित होगी, तनाव से दूर रह सकेंगे। जो अहिंसा के मर्म को जानता है, समझता है, वह कभी तनाव में नहीं आएगा। अच्छे जीवन की दूसरी कसौटी है परिवार में शांति और सौहार्द। व्यक्ति नियमपूर्वक धार्मिक क्रियाएं करता है। धर्मस्थल में जाकर आराधना करता है, लेकिन घर में उसका व्यवहार झगड़ालू किस्म का है, तो इसका तात्पर्य यही है कि अहिंसा उसके जीवन में नहीं आई, धर्म उसके जीवन में उतरा नहीं है। आज की नई पीढ़ी में धर्म के प्रति अनुराग नहीं है तो इसका कारण एक यह भी है कि वे अपने परिवार के बडों के जीवन में दोराहपन देख रहे हैं।

पिता दिन भर में धर्म ध्यान के बहुत सारे उपक्रम करता है और परिवार में अशांति का सबसे बड़ा कारण भी वही बनता है। इसके बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है। इस पर ध्यान देने की जरूरत है कि घर का वातावरण शांतिपूर्ण रहे। परिवार में छोटों को गलत संस्कार न दें। गलत संस्कार का मतलब आप समझ गए होंगे। कोई व्यक्ति आपके घर आया और आप उससे नहीं मिलना चाहते। तो अपने छोटे बच्चे को यह सिखा कर न भेजें कि जाओ, कह दो पिता जी घर पर नहीं हैं। इसका बहुत गलत प्रभाव पडेगा बच्चे के कच्चे मस्तिष्क पर। आपने तो अपनी बला टाल दी, लेकिन बच्चे के दिमाग में एक बात फीड कर दी कि पिता जी झूठे हैं। उसके मन में यह धारणा उसी दिन से निर्मित होनी शुरू हो जाएगी कि पिता जी अच्छे आदमी नहीं हैं, फिर बड़ा हो कर वह आपकी कोई देखभाल नहीं करेगा।

अच्छे जीवन की तीसरी कसौटी है- साथ किसका करें? तुम संसर्ग और संपर्क करो। साथ में रहो, लेकिन किसके? उत्तर में कहा गया- कल्याणमित्र के साथ रहो। कल्याणमित्र शब्द बहुत पुराना है। जैन और बौद्घ साहित्य में यह बार-बार आया है। दोनों परंपराओं में इस शब्द का बहुत बार प्रयोग हुआ है। जो हित की बात करता है, वह कल्याणमित्र है। प्रिय- अप्रिय से ऊपर उठकर जो अपने और दूसरे के हित की बात सोचता है, वह कल्याणमित्र है। इसलिए कहा गया कि अगर संपर्क और साथ करो तो कल्याणमित्र का करो।

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