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सिर्फ एक रात के लिए ही क्यों 7 फेरे लेते है किन्नर? आखिर क्या होता है इस 1 दिन की शादी का मतलब

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : December 15, 2024, 9:12 am IST
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सिर्फ एक रात के लिए ही क्यों 7 फेरे लेते है किन्नर? आखिर क्या होता है इस 1 दिन की शादी का मतलब

Transgender’s One Night Marriege: किन्नर समाज का इरावन से विवाह और विधवा विलाप की परंपरा निभाने के लिये ही एक रात की शादी रचाते है।

India News (इंडिया न्यूज), Transgender’s One Night Marriege: किन्नर समाज, जो अक्सर खुशी के अवसरों पर हमें बधाई देने के लिए घरों में आता है, अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं के लिए भी जाना जाता है। इनकी जिंदगी के कई पहलु समाज से अलग और रहस्यमय हैं, खासकर उनकी शादी और विवाह से जुड़ी परंपराएं। एक अद्वितीय परंपरा है, जिसमें किन्नर समाज अपने देवता इरावन से शादी करता है, और यह परंपरा महाभारत से जुड़ी है।

इरावन: महाभारत के महान योद्धा

इरावन, महाभारत के पात्रों में से एक थे और अर्जुन की पत्नी उलूपी के बेटे थे। इरावन का जीवन बेहद साहसी और वीरता से भरा था, लेकिन एक विशेष मान्यता के अनुसार, वह जन्म से किन्नर थे। महाभारत के युद्ध के समय, इरावन ने अपनी वीरता को साबित किया था और कौरवों के खिलाफ कई युद्धों में भाग लिया था।

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इरावन के बलिदान और विवाह की परंपरा

महाभारत के युद्ध की विजय के लिए श्रीकृष्ण ने मां काली की पूजा करने का निश्चय किया था, लेकिन पूजा के लिए एक राजकुमार की बलि देना आवश्यक था। इस बलि के लिए कोई राजकुमार आगे नहीं आया, तब इरावन ने खुद को बलि देने की स्वीकृति दी। लेकिन इरावन ने एक शर्त रखी—वह शादी करना चाहते थे, क्योंकि वह चाहते थे कि उनकी मृत्यु के बाद कोई उनके लिए विलाप करे, जिससे उनका पुण्य पूरा हो सके।

किंतु, इस शर्त को पूरा करने के लिए कोई राजकुमारी तैयार नहीं हुई। तब भगवान श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप धारण किया और इरावन से विवाह किया। विवाह के एक दिन बाद, श्रीकृष्ण ने विधवा के रूप में इरावन के लिए विलाप भी किया। यह घटना किन्नरों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इरावन ने जो बलिदान दिया और श्रीकृष्ण ने जो मोहिनी रूप में विलाप किया, वही किन्नरों की शादी की परंपरा का आधार बन गया।

किन्नरों की एक रात का विवाह

इस परंपरा के अनुसार, किन्नर समाज के लोग इरावन को अपना देवता मानते हैं। किन्नरों का यह विवाह एक विशेष पूजा और समारोह का हिस्सा होता है, जो लगभग 18 दिनों तक चलता है। इस दौरान, किन्नर समुदाय इरावन को अपने पति के रूप में पूजता है। शादी का यह रस्म एक रात के लिए होता है, और अगले दिन किन्नर अपना मंगलसूत्र और चूड़ियां तोड़कर विधवा के रूप में विलाप करते हैं। यह एक तरह से इरावन के बलिदान को याद करने और उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का तरीका होता है।

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विधवा विलाप

इस विशेष विवाह के बाद, किन्नर समुदाय के लोग विधवा का रूप धारण करते हैं, और इरावन की मूर्ति के सामने विधवा विलाप करते हैं। यह विलाप उस श्रद्धा और बलिदान को याद करने के रूप में होता है, जो इरावन ने महाभारत के युद्ध के लिए किया था। इस दिन, किन्नर अपनी सभी ज़िंदगी की खुशियों को भूलकर एक प्रकार से दुख और शोक का अनुभव करते हैं, जो उनके देवता इरावन के साथ उनकी श्रद्धा और कृतज्ञता को प्रकट करता है।

इरावन की पूजा और किन्नरों की श्रद्धा

किन्नर समाज के लिए यह विवाह एक गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक अर्थ रखता है। वे इरावन को एक देवता के रूप में पूजते हैं और उनका सम्मान करते हैं। इरावन का यह बलिदान और उनकी वीरता किन्नरों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, और वे इसे अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानते हैं। इरावन की पूजा के इस उत्सव में हजारों किन्नर शामिल होते हैं और यह किन्नर समाज के एकता और परंपरा को मजबूत करने का अवसर भी होता है।

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किन्नर समाज का इरावन से विवाह और विधवा विलाप की परंपरा एक अद्वितीय और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह महाभारत से जुड़ी एक पुरानी मान्यता पर आधारित है, जिसमें इरावन के बलिदान को याद किया जाता है। इस परंपरा के माध्यम से किन्नर समाज अपने देवता के प्रति अपनी श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करता है और उनके बलिदान के महत्व को समाज में प्रचारित करता है। यह परंपरा किन्नरों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है और उनके सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को दर्शाती है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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