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Deepdan Significance on Tulsi Vivah: भारतीय संस्कृति में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है. यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, प्रेम और पवित्रता का प्रतीक है. हर वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व देवउठनी एकादशी के अगले दिन आता है. इस दिन माता तुलसी (लक्ष्मी का अवतार) और भगवान शालिग्राम (विष्णु जी के स्वरूप) का विवाह पूरे वैदिक रीति-रिवाजों के साथ संपन्न किया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन से देवताओं की निद्रा समाप्त होती है और सभी शुभ कार्यों की शुरुआत होती है.
तुलसी विवाह का धार्मिक महत्व
तुलसी विवाह को सृष्टि में शुभता और समृद्धि का आरंभ माना जाता है. जिस प्रकार एक सामान्य विवाह दो आत्माओं का मिलन होता है, उसी प्रकार तुलसी और शालिग्राम का यह दिव्य मिलन ईश्वर और प्रकृति के संयोग का प्रतीक है. धर्मग्रंथों के अनुसार, जो भक्त इस दिन श्रद्धा से तुलसी विवाह कराते हैं, उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है. विवाह के समय तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाया जाता है लाल चुनरी, चूड़ियां, हल्दी-कुमकुम और पुष्पों से. वहीं भगवान शालिग्राम को दूल्हे के रूप में तैयार किया जाता है. यह पूरा आयोजन घर के वातावरण को पवित्र बनाता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है.
क्या है दीपदान का महत्व?
तुलसी विवाह में दीपदान का विशेष महत्व बताया गया है. यह केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि ज्ञान, धर्म और प्रकाश का प्रतीक है. जब दीपक जलाया जाता है, तो वह न केवल घर के अंधकार को दूर करता है बल्कि जीवन से अज्ञान, नकारात्मकता और दुख को भी मिटाता है. धर्मग्रंथों में कहा गया है कि तुलसी विवाह के दिन जलाया गया दीप पूरे वर्ष घर में सकारात्मक ऊर्जा, धन-लाभ और वैवाहिक सुख को बनाए रखता है. इस दिन का दीपक लक्ष्मी कृपा को आकर्षित करता है और घर में शांति और सौभाग्य का वास करता है.
दीपदान की सही दिशा और विधि
पूजा के दौरान पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना सबसे शुभ माना गया है क्योंकि पूर्व दिशा सूर्यदेव और भगवान विष्णु की मानी जाती है. यही दिशा ज्ञान और ऊर्जा का स्रोत मानी जाती है. तुलसी माता के सामने एक या चार दीपक जलाना अत्यंत मंगलकारी होता है. दीपक देशी घी का हो तो सर्वोत्तम है, लेकिन यदि घी उपलब्ध न हो तो सरसों या तिल के तेल का दीपक भी शुभ माना गया है. दीपक जलाने के बाद भगवान विष्णु और माता तुलसी का ध्यान करते हुए निम्न मंत्र का जाप किया जा सकता है —
“दीपं ज्योतिः परं ब्रह्म दीपं सर्वतमोऽपहम्
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥”