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Vastu Tips: क्या है दिशाओं का महत्व, वास्तु शास्त्र में जाने इसका अर्थ

India News (इंडिया न्यूज), Vastu Tips: घर, भवन, मकान, दुकान और ऑफिस आदि के निमार्ण से पहले इन बातों का ज़रूर ध्यान करना चाहिए, ताकि आप भरे नुकसान से बच सकें। वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे में बहुत ही विस्तार से बताया गया है कि भवन, मकान, घर, दुकान, ऑफिस आदि के निर्माण से पहले दिशा आदि का विशेष अध्यन करना चाहिए।

घर की पॉजिटिव और नेगेटिव एनर्जी के पीछे दिशाओं का बहुत अहम रोल होता हैं। घर के चारों ओर की दिशाएों से, घर के वातावरण पर भी बहुत प्रभाव पड़ता है। पिछले घरों में बने आंगन, तुलसी, स्नानघर, पूजा कक्ष, रसोई, पानी की टंकी आदि का स्थान, इसकी संरचना और स्थान की दिशाओं का प्रभाव भी उस घर में रहने वाले लोगों पर इसका पड़ता है। आइए जानते है वास्तु शास्त्र में दिशाओं के बारे मे।

कैसे जानें दिशाएं

दिशाएं वास्तु विज्ञान का मुख्य आधार होती हैं। कहा जाता है कि अगर आप प्रकृति के विरुद्ध जाएंगे तो आपको कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, इसलिए खुशहाली के लिए घर के मालिक को दिशाओं का सही ज्ञान ज़रूर होना चाहिए। वास्तु शास्त्र में प्रकृति और पंचमहाभूतों का संबंध दिशाओं से है। हम सभी को मुख्यतः चार दिशाओं का ज्ञान होता है। चार दिशाएँ-
पूर्व – सूर्योदय की दिशा
पश्चिम – सूर्यास्त की दिशा
उत्तर – उत्तरी ध्रुव की दिशा
दक्षिण – दक्षिणी ध्रुव की दिशा

जिस दिशा में सूर्य उगता है वह पूर्व दिशा है और जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है वह पश्चिम दिशा होती है। यदि आप पूर्व की ओर मुंह करके खड़े होंगे, तो दाईं से दक्षिण दिशा ओर और बाईं ओर से उत्तर दिशा है।

वास्तु शास्त्र में दिशाओं का ज्ञान

वास्तु शास्त्र में दिशाओं के ज्ञान के बारे में क्या बताया गया है, आइए जानते है और समझते हैं-

दक्षिण दिशा

इस दिशा के स्वामी कृष्ण वर्ण है, इन्हें न्यायाधिपति भी कहा जाता है। यह सूर्य देव के पुत्र होने के कारण धन-धान्य की समृद्धि देने वाले ईश्वर हैं। दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा भी कहा जाता है, इस दिशा में भारी चीज रखना सही माना जाता है। घर के दक्षिण दिशा का स्थान यदि ऊंचा हो तो वह लाभ देने वाला होता है। पितरों की तस्वीर दक्षिण दिशा में लगाई जानी चाहिए और जीवित व्यक्ति को कभी दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए।

अग्निकोण

वास्तु शास्त्र में पूर्व और दक्षिण दिशा के बीच के भाग को आग्नेयकोण या अग्नि कोण कहते हैं। यह एक शक्तिशाली और ऊर्जा वाली दिशा है। इस दिशा को इन्द्रदेव तथा दंडाधिकारी यम की शक्ति का मिलन भी कहा जाता है। इस दिशा में जलनशील चीज रखी जानी चाहिए जैसे कि चूल्हा रखना, या आग सेकने के लिए स्थान बनाना इस दिशा में उत्तम रहता है।

पश्चिम

इस दिशा को वरुण देव की दिशा कहा जाता है। यह शीतल प्रकृति की दिशा है और अस्त होते हुए सूर्य की किरणें इस दिशा की ओर से पड़ती हैं। इसलिए इस दिशा में खिड़की या दरवाजा होना कुछ अच्छा नहीं माना जाता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से अस्त होते हुए सूर्य की किरणें अच्छी नहीं मानी जाती है। पानी पीते समय मुंह पश्चिम दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए। जितना संभव हो सके इस दिशा में खिड़कियां कम ही रखनी चाहिए। पर्दे और कांच हमेशा सफेद रंग के लगाने चाहिए।

नैऋत्य कोण

दक्षिण और पश्चिम दिशा के बीच वाला कौन को नैऋत्य कोण कहा जाता है। यह भाग पश्चिम दिशा के देवता वरुण तथा दक्षिण के देवता की शक्ति से यह भाग बना है। यह शीतल स्वभाव तथा क्रूर स्वभाव का मिश्रण है। इस दिशा में अस्त्र-शस्त्र रखना उचित रहता है क्योंकि यह संहारक प्रकृति वाला कोण है, इसलिए इस दिशा में स्थान ऊंचा हो तो अच्छा रहता है। जो कि शत्रु के भय से बचाव करता है।

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