आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी अथवा दशहरा कहा जाता है। यह दिन नवरात्रि के समापन के तुरंत बाद आता है. इस अवसर पर क्षत्रिय और खत्री समाज अपने शस्त्रों की पूजा कर वीरता और शौर्य का स्मरण करते हैं, जबकि ब्राह्मण समाज मां सरस्वती की आराधना करता है. विजयादशमी नामकरण के पीछे दो मान्यताएं प्रचलित हैं. एक मान्यता के अनुसार, मां दुर्गा का एक नाम विजया है, इस कारण इस तिथि को विजयादशमी कहा जाता है। दूसरी मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम ने चौदह वर्षों का वनवास पूरा कर रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी.
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय के समय विजय काल नामक विशेष मुहूर्त होता है. यह काल अत्यंत शुभ और सभी कार्यों की सफलता देने वाला माना जाता है। शत्रु पर विजय पाने या युद्ध के लिए प्रस्थान करने का सबसे उपयुक्त समय यही है.
शिव-पार्वती संवाद और विजयदशमी
एक प्रसंग के अनुसार, जब भगवान शिव माता पार्वती के साथ भ्रमण कर रहे थे, तब श्रीराम की लंका विजय का विषय सामने आया। माता पार्वती ने आश्चर्य व्यक्त किया कि महाबली और मायावी रावण को श्रीराम ने किस प्रकार पराजित किया। इस पर भगवान शिव ने बताया कि विजयदशमी के दिन विजय काल होता है, जो विजय प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम है. इसी काल में श्रीराम ने लंका की ओर प्रस्थान किया और विजयश्री प्राप्त की. इस समय यदि श्रवण नक्षत्र का योग भी हो, तो यह और भी फलदायी माना जाता है. यहां तक कि युद्ध न होने पर भी राजाओं को अपने राज्य की सीमाओं से बाहर जाने का कार्य इसी समय करना चाहिए।
शमी वृक्ष और विजय का प्रतीक
कथा के अनुसार, जब श्रीराम लंका पर चढ़ाई करने निकले थे, तब शमी वृक्ष ने उनकी विजय का उद्घोष किया था. इसीलिए विजयदशमी के दिन शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है. इसे विजय और सफलता का प्रतीक माना जाता है.