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Muharram को क्यों कहते हैं मातम का महीना, ताजिया का जुलूस निकालकर मनाते है गम

PUBLISHED BY: Simran Singh • LAST UPDATED : July 17, 2024, 8:32 am IST
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Muharram को क्यों कहते हैं मातम का महीना, ताजिया का जुलूस निकालकर मनाते है गम

Muharram 2024

India News(इंडिया न्यूज), Muharram 2024: मुस्लिम समुदाय का शोक पर्व मुहर्रम मनाया जा रहा है। दरअसल मुहर्रम एक महीना होता है, इस महीने से इस्लाम का नया साल शुरू होता है। मुहर्रम के 10वें दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में शोक मनाया जाता है। इस दिन हजरत इमाम हुसैन के अनुयायी खुद को चोट पहुंचाकर इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं।

  • क्या है मुहर्रम?
  • इस वजह से हर साल मनाया जाता है मुहर्रम

मुहर्रम क्यों मनाया जाता है?

पूरी दुनिया में शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके अनुयायियों की शहादत की याद में मुहर्रम मनाते हैं। इमाम हुसैन पैगंबर मोहम्मद के नाती थे, जिन्हें कर्बला की लड़ाई में शहीद माना जाता है। मुहर्रम क्यों मनाया जाता है, यह जानने के लिए हमें इतिहास के उस हिस्से में जाना होगा, जब इस्लाम में खिलाफत यानी खलीफा का शासन था। यह खलीफा पूरी दुनिया में मुसलमानों का मुख्य नेता था। पैगंबर साहब की मौत के बाद चार खलीफा चुने गए। लोग आपस में फैसला करके इन्हें चुनते थे। Muharram 2024

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जब चरम अत्याचारों का आया था दौर

इसके करीब 50 साल बाद इस्लामी दुनिया में चरम अत्याचारों का दौर आया, मक्का से दूर सीरिया के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया, उसका काम करने का तरीका राजाओं जैसा था, जो उस समय इस्लाम के बिल्कुल खिलाफ था, तब इमाम हुसैन ने यजीद को खलीफा मानने से इनकार कर दिया। इससे नाराज होकर यजीद ने अपने गवर्नर वालिद बेटे अतुवा को एक आदेश लिखा, ‘तुम हुसैन को बुलाओ और उनसे कहो कि वे मेरे आदेशों का पालन करें, अगर वे नहीं मानते तो उनका सिर काटकर मेरे पास भेज दिया जाए।’

गवर्नर ने हुसैन को राजभवन में बुलाया और उन्हें यजीद का आदेश पढ़कर सुनाया। इस पर हुसैन ने कहा- ‘मैं यजीद के आदेशों का पालन नहीं कर सकता, जो व्यभिचारी, भ्रष्ट है और ईश्वर के पैगंबर पर विश्वास नहीं करता।’ इसके बाद इमाम हुसैन मक्का शरीफ पहुंचे, ताकि वे हज पूरा कर सकें। वहां यजीद ने हुसैन को मारने के लिए यात्रियों के वेश में अपने सैनिकों को भेजा। हुसैन को इस बात का पता चला लेकिन मक्का ऐसी पवित्र जगह है जहां किसी को मारना हराम है, इसलिए खून-खराबे से बचने के लिए हुसैन ने हज की जगह उमराह की छोटी सी रस्म पूरी की और परिवार के साथ इराक आ गए। Muharram 2024

मुहर्रम महीने की दूसरी तारीख 61 हिजरी को हुसैन अपने परिवार के साथ कर्बला में थे, महीने की नौवीं तारीख तक वो यजीद की फौज को सही रास्ते पर लाने के लिए मनाते रहे, लेकिन वो नहीं माने। इसके बाद हुसैन ने कहा- ‘कृपया मुझे एक रात की मोहलत दीजिए ताकि मैं अल्लाह की इबादत कर सकूं.’ इस रात को ‘आशूरा की रात’ कहा जाता है।

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तब सिर्फ हुसैन अकेले रह गए थे, लेकिन तभी अचानक उन्हें खेमे में शोर सुनाई दिया, उनके छह महीने के बेटे अली असगर को प्यास लगी थी। हुसैन ने उसे हाथों में उठाया और कर्बला के मैदान में ले आए। उन्होंने यजीद की सेना से अपने बेटे को पानी देने के लिए कहा, लेकिन सेना ने उनकी बात नहीं मानी और हुसैन के हाथों उनका बेटा तड़प-तड़प कर मर गया। इसके बाद भूखे-प्यासे हजरत इमाम हुसैन को भी मार दिया गया। हुसैन ने इस्लाम और इंसानियत के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। इसे आशूर यानी शोक का दिन कहा जाता है। इसके साथ ही ये भी बताया जाता है कि इराक की राजधानी बगदाद के दक्षिण-पश्चिम में कर्बला में इमाम हुसैन और इमाम अब्बास के तीर्थ स्थल मौजूद हैं। Muharram 2024

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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