संबंधित खबरें
महाकुंभ में किन्नर करते हैं ये काम…चलती हैं तलवारें, नागा साधुओं के सामने कैसे होती है 'पेशवाई'?
सोमवती अमावस्या के दिन भुलकर भी न करें ये काम, वरना मुड़कर भी नही देखेंगे पूर्वज आपका द्वार!
80 वर्षों तक नही होगी प्रेमानंद जी महाराज की मृत्यु, जानें किसने की थी भविष्यवाणी?
घर के मंदिर में रख दी जो ये 2 मूर्तियां, कभी धन की कमी छू भी नही पाएगी, झट से दूर हो जाएगी कंगाली!
इन 3 राशियों के पुरुष बनते हैं सबसे बुरे पति, नरक से बदतर बना देते हैं जीवन, छोड़ कर चली जाती है पत्नी!
अंतिम संस्कार के समय क्यों मारा जाता है सिर पर तीन बार डंडा? जानकर कांप जाएगी रूह
India News (इंडिया न्यूज़), Sacred Thread Prohobited For Women: हिन्दू धर्म में जनेऊ संस्कार, जिसे उपनयन संस्कार भी कहा जाता है, अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह संस्कार जीवन के उन सोलह संस्कारों में से एक है जो जीवन की विभिन्न अवस्थाओं में सम्पन्न किए जाते हैं। परंपरागत रूप से, जनेऊ संस्कार को पुरुषों के लिए अनिवार्य माना गया है। लेकिन क्या लड़कियों का जनेऊ धारण करना शास्त्रों में वर्जित है, या यह एक सामाजिक परंपरा है? आइए, इस विषय पर विस्तार से विचार करें।
जनेऊ संस्कार का अर्थ केवल धागा पहनाना नहीं है, बल्कि यह एक ब्राह्मण या किसी अन्य वर्ण के व्यक्ति के लिए वेदों के अध्ययन और धार्मिक कार्यों में अधिकार प्राप्त करने का संकेत है। यह संस्कार एक प्रकार की दीक्षा है, जो व्यक्ति को समाज में एक धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार करता है।
एक धनवान राजा की बेटी होकर भी सिर्फ तांबे के ही बर्तन में खाना क्यों पकाती थी द्रौपदी?
शास्त्रों में स्पष्ट रूप से लड़कियों के लिए जनेऊ धारण करने की कोई मनाही नहीं है, लेकिन इसके लिए विशेष निर्देश भी नहीं दिए गए हैं। अधिकांश हिन्दू धर्मग्रंथों में यह संस्कार पुरुषों के लिए निर्धारित किया गया है, विशेषकर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णों के पुरुषों के लिए।
कुछ विद्वानों का मानना है कि प्राचीन काल में स्त्रियों को भी शिक्षा और संस्कारों का अधिकार था, लेकिन समय के साथ सामाजिक व्यवस्थाओं और परंपराओं ने इस परंपरा को बदल दिया।
शिव जी ने क्यों अलग कर दिया था ब्रह्माजी का पांचवा सिर? नहीं तो आज तबाह थी दुनिया!
समाज में महिलाओं के लिए जनेऊ धारण करने की परंपरा बहुत कम देखने को मिलती है। हालांकि, कुछ विशेष समुदायों में, खासकर जहाँ महिलाओं को भी वेदों का अध्ययन कराया जाता है, वहां पर जनेऊ संस्कार को स्वीकार किया गया है। यह प्रथा मुख्य रूप से उन परिवारों में होती है जो शास्त्रों की शिक्षाओं के आधार पर समतामूलक दृष्टिकोण रखते हैं।
आज के समय में, जब लैंगिक समानता पर अधिक जोर दिया जा रहा है, कुछ परिवार और समुदाय इस परंपरा को बदल रहे हैं और लड़कियों को भी जनेऊ धारण करवा रहे हैं। उनका मानना है कि धर्म और शास्त्रों का सही अर्थ समता और न्याय में निहित है, और जनेऊ संस्कार का उद्देश्य व्यक्ति को धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारियों के लिए तैयार करना है, चाहे वह पुरुष हो या महिला।
क्या है स्यमंतक मणि जिसकी चोरी के झूठे आरोप में फंसे थे श्री कृष्ण
शास्त्रों में लड़कियों के जनेऊ धारण करने की स्पष्ट वर्जना नहीं है, लेकिन पारंपरिक रूप से इसे पुरुषों के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। समाज में लड़कियों के लिए जनेऊ संस्कार को अपनाने के प्रयास किए जा रहे हैं, और यह आधुनिक समाज में एक नयी दृष्टि के रूप में देखा जा सकता है। धार्मिक संस्कारों और परंपराओं को नए संदर्भ में समझने और स्वीकार करने की आवश्यकता है, ताकि समाज में समानता और न्याय की स्थापना हो सके।
सालों से अधूरी इच्छा को पूर्ण कर देता हैं ये एक उपाय, बस समय का रखना होता हैं खास ध्यान?
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.