India News (इंडिया न्यूज), Religion: देश का पहला महिला अखाड़ा, गायत्री त्रिवेणी पीठ अक्सर विवादों में रहा है। इसे लेकर देश के कुल 13 अखाड़ों के महंत समय-समय पर आपत्ति व्यक्त करते रहे हैं। इस समय प्रयगाराज के पवित्र गंगां-यमुना के संगम पर लगे माघ मेले में गायत्री त्रिवेणी पीठ और इसकी पीठाधीश्वर त्रिकाल भवंता सरस्वती एक बार फिर सुर्खियों में हैं। आइये जानते हैं इस अखाड़े को लेकर क्या है विवाद? कौन हैं गायत्री त्रिवेणी पीठ की पिठाधिश्वर त्रिकाल भवंता?
शंकराचार्य त्रिकाल भवंता सरस्वती अपने गायत्री त्रिवेणी प्रयागपीठ को 14 वां अखाड़ा होने का दावा करती रहीं हैं। जबकि हिंदू संत परंपरा में कुल 13 अखाड़े हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उनके अखाड़े को मान्यता मान्यता नहीं दी है। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद, सभी अखाड़ों का सर्वोच्च संगठन है।
नए अखाड़े के बनाये जाने पर निरंजनी अखाड़े के स्वर्गीय महंत नरेंद्र गिरि ने अखाड़ों को सनातन धर्म की रीढ़ बताते हुए कहा था, अखाड़ा बनाना कोई मजाक नहीं है। आदिगुरु शंकराचार्य ने इन्हें स्थापित किया था। परंपरा के मुताबिक इनकी संख्या 13 है। इसलिए 14वां अखाड़ा नहीं बन सकता। कुछ महंतों का कहना है महिला अखाड़ा परंपरा के खिलाफ है।
इस बात पर त्रिकाल भवंता सरस्वती का कहना है कि, आदि शंकराचार्य ने तो चार अखाड़ों की ही नीव रखी थी। लेकिन आज इनकी संख्या बढ़कर 13 कैसे हो गई? अगर 4 अखाड़े से 13 बन सकते हैं तो 14वां क्यों नहीं बन सकता।
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गायत्री त्रिवेणी प्रयागपीठ की स्थापना 2013 में त्रिकाल भवंता ने की। इनका आश्रम उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में नैनी के पास अरैल में है। इसे श्री सर्वेश्वर महादेव बैकुंठधाम मुक्तिद्वार (परी) अखाड़े नाम से भी जाना जाता है। आखिर क्यों एक अलग महिला अखाड़े की नीव रखी गई और इसके पीछें की वजहें क्या थी?
इस पर त्रिकाल भवंता ने अलग-अलग मीड़िया रिपोर्ट में जवाब दिया है। वे कहती हैं सभी अखाड़ों में पुरूषों का वर्चश्व है। सभी शक्तिपीठ में पूजा तो देवी की होती है, लेकिन महिलाओं को ही गर्भगृह में जाने भी नहीं दिया जाता। कई बारी ऐसी खबरें आती हैं कि महिलाओं का मठों में यौन शोषण हो रहा। ऐसे में उनके साधना में बाधा आती है। इसलिए महिला संतों की सुरक्षा और सम्मान को ध्यान में रखते हुए यह अखाड़ा बनाया गया है।
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त्रिकाल भवंता सरस्वती उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले की रहने वाली हैं। उनका मूल नाम अनिता शर्मा है। उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों में पीएचडी कर रखी है। वह एक सोशल वर्कर भी रहीं हैं। उन्होंने एक एनजीओ भी बना रखा था जिसके जरिये वह गरीब और मुस्लिम महिलाओं के उत्थान का कार्य करती थी। त्रिकाल भवंता राजनीति में भी हाथ आजमा चुकी है। साल 2001 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा में इलाहाबाद शहर दक्षिणी सीट से इलेक्शन लड़ा पर हार गईं। 2003 के बाद उन्होंने अपने को पूरे तरीके से धर्म के कार्यों में लगा दिया।
हिंदू संत परंपरा में कुल 13 अखाड़े हैं। जिसमें 7 शैव, 3 वैष्णव और 3 उदासीन अखाड़े हैं। इन अखाड़ों के नाम हैं- जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अटल, आह्वान, आनंद, अग्नि, दिगंबर, निर्वाणी और निर्मोही, बड़ा उदासीन, नया उदासीन और निर्मल अखाड़ा।
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