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जब इस मणि को चुराने के लांछन में फंसे थे श्री कृष्ण…फिर कैसे खुद भगवान ने दिया होगा अपनी बेगुनाही का सबूत?

Prachi Jain • LAST UPDATED : October 13, 2024, 1:01 pm IST

India News (इंडिया न्यूज), Syamantak Mani And Shri Krishna: भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं अद्भुत और रहस्यमयी हैं, जो हिंदू धर्म में सदियों से पूजनीय हैं। उनकी महिमा सिर्फ धर्म, भक्ति और ज्ञान तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनके जीवन की घटनाओं में भी कई रोचक मोड़ आते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग स्यमंतक मणि से जुड़ा हुआ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण पर चोरी का गंभीर आरोप लगाया गया था।

स्यमंतक मणि और उसका महत्व

हिंदू ग्रंथों के अनुसार, स्यमंतक मणि एक दिव्य रत्न था, जिसे भगवान सूर्य ने अपने भक्त सत्राजित को उसकी कठोर तपस्या के फलस्वरूप प्रदान किया था। यह मणि अत्यधिक शक्तिशाली और शुभता का प्रतीक मानी जाती थी, जिसके पास यह मणि होती, उसके राज्य में कभी अकाल या विपत्ति नहीं आती। इसके साथ ही, यह मणि प्रतिदिन 8 भार सोना उत्पन्न करती थी, जिससे सत्राजित का राज्य समृद्ध हो गया था।

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प्रसेनजित का शिकार पर जाना और मणि का गायब होना

सत्राजित ने स्यमंतक मणि को अपनी संपत्ति के रूप में अपने देवघर में रखा था। एक दिन उनका भाई प्रसेनजित इस मणि को धारण कर शिकार के लिए जंगल चला गया। लेकिन शिकार के दौरान, एक सिंह ने प्रसेनजित पर हमला कर उसे मार दिया और स्यमंतक मणि छीन ली। बाद में, वह सिंह भी जामवंत द्वारा मारा गया, जो कि एक ऋक्ष (भालू) थे और भगवान राम के परम भक्त माने जाते हैं। जामवंत ने मणि को अपने पास रख लिया और इसे अपनी गुफा में सुरक्षित रखा।

श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप

जब प्रसेनजित जंगल से वापस नहीं लौटा और स्यमंतक मणि भी गायब हो गई, तो सत्राजित ने संदेह के आधार पर भगवान श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप लगाया। यह एक गंभीर लांछन था, क्योंकि श्रीकृष्ण द्वारका के राजा थे और उनके ऊपर ऐसा आरोप लगने से पूरे राज्य में हलचल मच गई। हालांकि श्रीकृष्ण निर्दोष थे, फिर भी उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोप को मिटाने का निश्चय किया और मणि की खोज में निकल पड़े।

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जामवंत के साथ युद्ध और मणि की प्राप्ति

श्रीकृष्ण ने जंगल में मणि की खोज करते हुए, सिंह की मृत्यु का पता लगाया और अंततः जामवंत की गुफा तक पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि स्यमंतक मणि जामवंत के पास है। लेकिन जामवंत ने मणि लौटाने से पहले श्रीकृष्ण से युद्ध किया। यह युद्ध पूरे 27 दिनों तक चला, और अंततः श्रीकृष्ण ने जामवंत को पराजित कर दिया। पराजय के बाद, जामवंत को यह एहसास हुआ कि श्रीकृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे भगवान विष्णु के अवतार हैं। इस समझ के बाद जामवंत ने न केवल स्यमंतक मणि श्रीकृष्ण को सौंप दी, बल्कि अपनी पुत्री जामवंती का विवाह भी उनसे कर दिया।

श्रीकृष्ण की न्यायप्रियता और सत्य की जीत

स्यमंतक मणि की घटना से यह स्पष्ट होता है कि भगवान श्रीकृष्ण केवल शक्तिशाली और ज्ञानी ही नहीं थे, बल्कि वे न्याय के प्रतीक भी थे। उन्होंने स्वयं पर लगे झूठे आरोप को खारिज करने के लिए सत्य और धैर्य का मार्ग अपनाया। इस घटना के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण ने यह संदेश दिया कि सत्य हमेशा जीतता है, चाहे रास्ता कितना भी कठिन क्यों न हो।

इस प्रकार, श्रीकृष्ण ने न केवल स्यमंतक मणि को वापस लाकर अपने ऊपर से आरोप हटाया, बल्कि उन्होंने अपनी न्यायप्रियता और महानता को भी सिद्ध किया।

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