India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna Mrityu: द्वापर युग की समाप्ति के साथ महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडवों की विजय हुई, और वे अब अपने राजसी जीवन में लौटने को तैयार थे। लेकिन जब युद्ध समाप्त हो गया, भगवान श्रीकृष्ण, जो इस महाक्रम के महत्वपूर्ण नायक थे, एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। तभी एक शबर के श्रापवश, भगवान श्रीकृष्ण को एक तीव्र तीर लगा। यह तीर भगवान के शरीर में एक गहरे घाव का कारण बना, और अंततः भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु हो गई।
उनकी मृत्यु से सभी प्राणी शोकाकुल हो गए। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण के अंतिम संस्कार की तैयारी की, और उनकी पार्थिव देह को अग्नि में समर्पित कर दिया। भगवान का पूरा शरीर जल गया, लेकिन एक चमत्कारी घटना घटी—उनका दिल, जो कि अत्यंत पवित्र था, अग्नि की लपटों से बच गया। यह दिल अपनी दिव्य शक्ति के कारण अग्नि के ताप को सहन नहीं कर सका और वैसे का वैसा रहा।
इस कृष्ण जन्माष्टमी अगर घर ले आयें ये 5 चीजें, तो ग्रह दुष्प्रभाव से पा लेंगे जिंदगीभर का छुटकारा!
इस पवित्र अंग को भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों ने समुद्र में प्रवाहित कर दिया, ताकि इसे किसी और के लिए प्रेरणा का स्रोत बनाया जा सके। समुद्र की लहरों में बहते हुए, वह हृदय पुरी के तट पर पहुंच गया। वहां, समुद्र के किनारे पर, यह हृदय एक अद्भुत परिवर्तन के तहत लट्ठ का रूप ले लिया। इस दिव्य लट्ठ की पवित्रता को समझते हुए, पुरी के राजा इंद्रद्युम्न को रात में एक दिव्य स्वप्न आया। स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और इस लट्ठ के बारे में जानकारी दी।
स्वप्न से जागने के बाद, राजा इंद्रद्युम्न ने समुद्र तट पर जाकर उस लट्ठ को अपने साथ लाने का निर्णय लिया। उन्होंने समुद्र के तट पर पहुँचकर लट्ठ को लिया और उसे अपने महल में सुरक्षित रखा। राजा ने भगवान श्रीकृष्ण के आदेश को ध्यान में रखते हुए, एक महान कार्य की शुरुआत की।
आखिर कौन थे वो कृपाचार्य जिन्होंने पांडव पुत्र की मृत्यु तक रचने का किया था साहस?
इस दिव्य लट्ठ की मदद से, प्रसिद्ध देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियां बनाई। ये मूर्तियां आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रतिष्ठित हैं और भक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय हैं। भगवान श्रीकृष्ण का वह पवित्र हृदय, जो समुद्र में बहते हुए पुरी के तट पर आया था, आज भी भक्तों को अनंत आशीर्वाद और दिव्य कृपा प्रदान करता है।
इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य ऊर्जा और पवित्रता ने एक नया रूप लिया, और उनकी उपस्थिति आज भी पुरी के जगन्नाथ मंदिर में हमें एक दिव्य अनुभव का अहसास कराती है।
क्या द्वापर युग के ‘नकली कृष्ण’ को जानते हैं आप? भगवान भी खा गए थे धोखा, इस अंग से हुई थी पहचान
Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.