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India News(इंडिया न्यूज), Dah Sanskaar: मृत्यु जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसे कोई भी टाल नहीं सकता। जब कोई अपना इस दुनिया से चला जाता है, तो उस शोक को सहन करना बहुत कठिन होता है। लेकिन यह भी सत्य है कि जीवन का अंत निश्चित है। हर इंसान को एक न एक दिन इस दुनिया से जाना ही है, और यह प्रकृति का अनिवार्य नियम है। हिन्दू धर्म में, मृतक को अंतिम विदाई देने के लिए दाह संस्कार की परंपरा है, जिसमें शव को चिता पर रखकर आग में जलाया जाता है। इस प्रक्रिया में अधिकांश शरीर के अंग जलकर राख में बदल जाते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा अंग है, जो इस आग में भी पूरी तरह से नहीं जलता? जी हां, वह अंग हैं दांत।
आइए, जानते हैं दाह संस्कार के दौरान दांत क्यों नहीं जलते, और इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण क्या है।
हिंदू धर्म में जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो उसे अंतिम विदाई देने के लिए दाह संस्कार की प्रक्रिया अपनाई जाती है। इस प्रक्रिया में शव को चिता पर रखकर उसमें आग लगाई जाती है, जिससे शरीर के सारे अंग जलकर राख हो जाते हैं। हड्डियां भी जलने के बाद अस्थियों के रूप में बच जाती हैं, जिन्हें नदियों में प्रवाहित किया जाता है। हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, शरीर का एक हिस्सा है, जो आग में जलने के बावजूद अपनी पूरी रूप में बचा रहता है, और वह है दांत।
दाह संस्कार के दौरान, शव के शरीर में मौजूद अधिकांश अंग जलकर राख हो जाते हैं, लेकिन दांत पूरी तरह से नहीं जलते। इसका मुख्य कारण उनके अंदर मौजूद एक विशेष तत्व है – कैल्शियम फॉस्फेट। दांत कैल्शियम फॉस्फेट से बने होते हैं, जो बहुत मजबूत और तापमान के प्रति प्रतिरोधी होते हैं। यही कारण है कि दाह संस्कार की आग में भी दांत पूरी तरह से नहीं जलते।
दांतों की संरचना दो प्रमुख हिस्सों में बांटी जाती है – एनामल (enamel) और डेंटिन (dentin)। एनामल दांत का सबसे बाहरी और सबसे कठोर हिस्सा होता है, जो कैल्शियम फॉस्फेट और कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है। यही कठोर हिस्सा चिता की आग में बचा रहता है। शरीर की हड्डियों को जलाने के लिए लगभग 700 से 800 डिग्री फ़ारेनहाइट तापमान की आवश्यकता होती है, जबकि दांत के तामचीनी को पूरी तरह जलाने के लिए इससे कहीं अधिक तापमान (करीब 1292 डिग्री फ़ारेनहाइट) की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि चिता में होने वाली उच्च गर्मी के बावजूद दांत पूरी तरह से जलकर राख नहीं होते, और कुछ हिस्से सुरक्षित रह जाते हैं।
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हालांकि दांतों के बारे में यह तथ्य बहुत प्रसिद्ध है, लेकिन कुछ लोग यह भी मानते हैं कि नाखून और बाल भी चिता की आग में नहीं जलते। लेकिन इसका कोई पक्का वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। बालों और नाखूनों में भी केराटिन नामक पदार्थ होता है, जो आग से कुछ हद तक बच सकता है, लेकिन इसका जलना निर्भर करता है तापमान और अन्य परिस्थितियों पर।
चूंकि दांत आग में नहीं जलते, इसलिए यह अक्सर पहचान के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं। खासतौर पर, जब कोई व्यक्ति गंभीर दुर्घटना का शिकार होता है या यदि शव पहचानने योग्य नहीं रहता, तो दांतों की संरचना और उनकी विशेषताएँ जांचने से पहचान में मदद मिल सकती है।
मृत्यु जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, और हिंदू धर्म में दाह संस्कार एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में अधिकांश शरीर के अंग जलकर राख में बदल जाते हैं, लेकिन दांत कैल्शियम फॉस्फेट की मजबूत संरचना के कारण जलकर पूरी तरह से नष्ट नहीं होते। यही कारण है कि दाह संस्कार के बाद दांत बच जाते हैं, और यह एक ऐसी प्राकृतिक विशेषता है, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी समझी जा सकती है।
इस प्रकार, दाह संस्कार से जुड़े कई पहलुओं के पीछे की वैज्ञानिक समझ हमें जीवन और मृत्यु के इस अनिवार्य सत्य को और गहराई से जानने का अवसर देती है।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।
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