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आजादी से पहले ब्रिटिश शासन के दौरान तिरूपति मंदिर की जिम्मेदारी उठता था ये हिन्दू व्यक्ति, ऐसी क्या थी खासियत?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 22, 2024, 7:00 pm IST

Tirupati Temple During British Rule: भारत की आजादी से पहले, 1843 में ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार के बाद अंग्रेजी शासन ने मंदिर की देखरेख का जिम्मा हाथीरामजी मठ के महंतों को सौंप दिया। महंतों ने वर्ष 1933 तक इस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभाया।

India News (इंडिया न्यूज), Tirupati Temple During British Rule: तिरुपति बालाजी मंदिर को लेकर हाल ही में लड्डू प्रसाद में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल का आरोप लगाया गया है, जिससे देशभर में हंगामा मच गया है। आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने यह दावा किया कि लड्डू बनाने में इस्तेमाल होने वाला घी जानवरों की चर्बी से निकाला जा रहा है। इससे आरोप वर्तमान जगन रेड्डी सरकार पर भी लगाए जा रहे हैं।

तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रबंधन

आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि तिरुपति बालाजी मंदिर की देखरेख का जिम्मा आंध्र प्रदेश सरकार के अधीन है। राज्य सरकार इस पवित्र स्थल के प्रबंधन और संचालन की जिम्मेदारी निभाती है, जिससे यह विवाद सीधे तौर पर सरकार से जुड़ा हुआ है।

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तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास

तिरुपति बालाजी मंदिर सदियों से हिंदू धर्म के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र रहा है। इस मंदिर में भगवान विष्णु के वेंकटेश्वर अवतार की पूजा की जाती है। मंदिर को कलयुग का वैकुंठ कहा जाता है, जहाँ देश और दुनिया भर से लोग भगवान श्री वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए आते हैं।

इस मंदिर का निर्माण चोल, होयसल और विजयनगर के राजाओं द्वारा आर्थिक योगदान से किया गया था। यह पवित्र स्थल आस्था, इतिहास और कला का केंद्र रहा है।

अंग्रेजों के शासन में तिरुपति मंदिर का प्रबंधन

भारत की आजादी से पहले, 1843 में ईस्ट इंडिया कंपनी के विस्तार के बाद अंग्रेजी शासन ने मंदिर की देखरेख का जिम्मा हाथीरामजी मठ के महंतों को सौंप दिया। महंतों ने वर्ष 1933 तक इस जिम्मेदारी को सफलतापूर्वक निभाया।

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1933 में मंदिर का प्रबंधन

वर्ष 1933 में मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद मंदिर की देखरेख के लिए तिरुमाला-तिरुपति समिति का गठन किया गया। इस समिति ने मंदिर के प्रशासन और संचालन की जिम्मेदारी ली। बाद में आंध्र प्रदेश के गठन के बाद, इस समिति का पुनर्गठन हुआ और राज्य सरकार ने एक प्रशासनिक अधिकारी को नियुक्त किया, जो राज्य के प्रतिनिधि के रूप में मंदिर का प्रबंधन करता है।

तिरुपति बालाजी लड्डू का विवाद

तिरुपति बालाजी मंदिर का लड्डू प्रसाद लाखों श्रद्धालुओं के बीच आस्था और प्रसाद के रूप में अत्यधिक सम्मानित है। इस लड्डू का एक जीआई टैग (Geographical Indication) भी है, जो इसे विशिष्टता प्रदान करता है। लेकिन हाल ही में इस लड्डू में जानवरों की चर्बी के इस्तेमाल के आरोप से श्रद्धालुओं में नाराजगी फैल गई है। हालांकि, इन आरोपों की पुष्टि नहीं हुई है और यह विवाद फिलहाल धार्मिक और राजनीतिक बहस का विषय बना हुआ है।

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निष्कर्ष

तिरुपति बालाजी मंदिर भारतीय आस्था और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके प्रबंधन का इतिहास भी जटिल है, जो अंग्रेजों के समय से लेकर आज तक बदलता रहा है। वर्तमान विवाद मंदिर की पवित्रता और मान्यता पर सवाल उठाता है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि इस तरह के आरोपों की उचित जांच की जाए ताकि श्रद्धालुओं की आस्था प्रभावित न हो।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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